विद्या ददाति विनयम

यह वाक्य उपनिषद की देन है, विद्या ददाति विनयम से तात्पर्य है कि विद्यावान इंसान में विनय होता है अर्थात उसमे विनम्रता होती है।

विद्या ददाति विनयं विनयाद्याति पात्रताम् । पात्रत्वाध्दनमाप्नोति धनाध्दर्मं ततः सुखम् ।।

विद्या विनय देती है, विनय से पात्रता आती है, पात्रता से धन आता है, धन से धर्म होता है, और धर्म से सुख प्राप्त होता है।

भारतवर्ष के पुराने गुरु, महात्मा तथा ऋषिमुनियों के अनुसार “विद्या” प्राप्ति का उद्देश्य केवल किताबी तथा मौखिक ज्ञान हाशिल करना नहीं है बल्कि अपने अंतर्निहित सम्पूर्णता को सही से व्यक्त करना है।

वृक्ष पर जितना ज्यादा फल लगते है, वृक्ष की डालियाँ उन फलों के भार से झुक जाती है, वैसे ही विद्यावान इंसान अपने विद्या और ज्ञान से सर्वथा विनम्र रहकर अहंकार से दूर रहता है।