समलैंगिक विवाहों को कानूनी मान्यता देने की याचिका को सूप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने बहुमत से खारिज कर दिया है। इस याचिका पर विचार करने वाली पीठ के 5 में से चार जजों ने अपने फैसले में कहा कि समलैंगिक जोड़ों को शादी करने का कोई मौलिक अधिकार नहीं है। कोर्ट ने समलैंगिक जोड़ों को बच्चा गोंद लेने का अधिकार देने से भी मना कर दिया।
सूप्रीम कोर्ट में 18 समलैंगिक जोड़ों ने ऐसे विवाह और रिलेशन को सामाजिक मान्यता देने के लिए याचिका दायर की थी। समलैंगिक विवाह एक ऐसा मुद्दा है जो देश भर में विवाद में रहा है।
भारत के मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पाँच जजों की पीठ ने बीते 11 मई को इस याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। 17 अक्टूबर को इस पर सूप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया है।

समलैंगिक विवाह पर कानून बनाना संसद का काम
CJI डीवाय चंद्रचूड़ ने अपने इस अहम फैसले में समलैंगिकों को शादी का अधिकार देने की मांग करते हुए यह फैसला संसद पर छोड़ दिया है। कोर्ट के मुताबिक इस विषय पर कानून बनाने का अधिकार संसद का है। कोर्ट सिर्फ कानून लागू कर सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने विशेष विवाह अधिनियम की संवैधानिकता को वर्तमान स्वरूप में कायम रखते हुए समलैंगिक संबंधों को कानूनी मान्यता देने, बहस करने, और निर्णय लेने का काम विधायिका यानि संसद का बताया है।

हालांकि चीफ़ जस्टिस डीवाय चंद्रचूड़ ने समलैंगिकों के साथ होने वाले भेदभाव को दूर करने के दिशा-निर्देश दिये हैं। संविधान पीठ के 5 में से 4 जजों ने बारी-बारी से अपना फैसला सुनाया।
समलैंगिक विवाह पर फैसले की मुख्य बातें
समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले में उन्हे शादी का अधिकार नहीं मिला है। लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने समलैंगिक लोगों के समान अधिकारों को मान्यता देने के निर्देश जारी किए हैं। इस विषय पर कोर्ट ने जनता को जागरूक करने का आह्वान भी किया है। CJI डीवाय चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ ने केंद्र सरकार को समलैंगिक समुदाय के साथ गैर-भेदभाव और उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करने का निर्देश दिया।

• विवाह नागरिकों के कानूनी दर्जे वाले अधिकार में आता है। इसे फंडामैंटल राइट या मौलिक अधिकार की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता।
• वर्तमान समय में समलैंगिकता का विषय सिर्फ शहर के उच्च वर्ग तक सीमित नहीं है। इस समाज के लोग हर क्षेत्र और जगह पर हैं।
• सूप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से समलैंगिक विवाह को मान्यता देने की बात कही है क्योंकि कानून बनाना संसद का काम है। कोर्ट सिर्फ कानून लागू कर सकती है।
• जस्टिस कौल ने अपने फैसले में बताया कि समलैंगिकता प्राचीन काल से ही समाज का हिस्सा रही है। इसे कानूनी मान्यता मिलनी चाहिए।
• हालांकि पीठ के सभी जजों ने स्पेशल मैरेज एक्ट के तहत समलैंगिक विवाह को मान्यता देने का विरोध किया।
• CJI डीवाय चंद्रचूड़ की अध्यक्षता में सूप्रीम सौर्ट की संविधान पीठ ने इस विषय पर सरकार से एक कमेटी बनाने की सिफ़ारिश की है।
• जस्टिस एस रवीन्द्र भट्ट और जस्टिस पी एस नरसिम्हा ने स्पष्ट किया कि समलैंगिक जोड़ों को बच्चा गोंद लेने का अधिकार नहीं दिया जा सकता।