Pratyay kise kahate hain (प्रत्यय), परिभाषा , प्रकार Examples in hindi

Pratyay kise kahate hain प्रत्यय किसे कहते हैं, प्रत्यय के भेद , प्रत्यय के उदाहरण एवं इसकी विशेषताएं हिंदी व्याकरण एवं नए शब्द-रचना के दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण है | हिन्दी में प्रत्यय के प्रयोग से नए शब्दों का निर्माण होता है। प्रत्यय मूल शब्दों के अंत में लगते हैं।

Pratyay kise kahate hain प्रत्यय किसे कहते हैं और प्रत्यय के भेद से परिचय कराने वाला यह आलेख आपको प्रत्यय के प्रकारों और उनके उदाहरणों के बारे में भी बताएगा।लेकिन सबसे पहले आइए जान लेते हैं कि हिन्दी में प्रत्यय किसे कहते हैं Pratyay kise kahate hain और प्रत्यय की परिभाषा क्या है। 

Pratyay kise kahate hain प्रत्यय किसे कहते हैं

प्रत्यय की परिभाषा: हिन्दी भाषा के सार्थक शब्दों के बाद जो अक्षर या अक्षरसमूह जुड़कर उनके अर्थ में विशेषता या परिवर्तन लाते हैं, उन्हे प्रत्यय कहा जाता है।

प्रत्यय का अपना कोई अर्थ नहीं होता है किन्तु अन्य सार्थक शब्दों के साथ प्रयोग किए जाने पर ये उन शब्दों में विशेषता प्रकट करते हैं।

प्रत्यय दो शब्दों के मेल से बना है‘प्रति’+’अय’। ‘प्रति’ का अर्थ ‘साथ में’ या ‘बाद में’ होता है जबकि ‘अय’ का अर्थ ‘चलने वाला’ होता है। इस दृष्टि से ‘प्रत्यय’ शब्द का शाब्दिक अर्थ हुआ ‘शब्दों के साथ किन्तु बाद में लगने वला या चलने वाला’। प्रत्यय शब्द का एक अर्थ पीछे आना भी होता है।

आइए प्रत्यय के कुछ उदाहरण देखते हैं-

Pratyay ke udaharan प्रत्यय के उदाहरण:

राम + आयन = रामायण                                                                                                                       तर्क + इक = तार्किक                                                                                                                          गुरु + इष्ट = गरिष्ठ                                                                                                                              निशा + = नैश                                                                                                                                 अद्य + तन = अद्यतन

ऊपर दिये गए उदाहरणों में ‘आयन’, ‘इक’, ‘इष्ट’, ‘अ’, एवं ‘तन’ प्रत्यय हैं जो मूल शब्दों के साथ जुड़कर विशेषता एवं नए अर्थ प्रकट कर रहे हैं।

प्रत्यय की विशेषता और लक्षण

1) हिन्दी भाषा में प्रत्ययों की शुरुआत संस्कृत भाषा के प्रत्ययों के अनुसार ही हुई है।                                              2) संधि, समास, और उपसर्गों के समान ही प्रत्यय शब्द रचना के अंग माने जाते हैं।                                             3) प्रत्यय का अपना कोई स्वतंत्र अस्तित्व नहीं होता है। उनका प्रयोग सदा मूल शब्दों के साथ जुडने पर ही सार्थक होता है।                                                                                                                                  4) प्रत्यय उपसर्गों के समान ही एक अविकारी शब्दांश होते हैं। इनके रूप, लिंग, वचन इत्यादि परिवर्तित नहीं होते।                                                                                                                                                      5) हिन्दी में प्रत्यय संस्कृत के अलावा उर्दू, अरबी-फारसी, अँग्रेजी इत्यादि भाषाओं के भी प्रयोग किए जाते हैं।

हिन्दी भाषा व्याकरण में प्रत्यय उपसर्गों के ठीक विपरीत होते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि उपसर्ग सदा मूल शब्दों के पहले लगते हैं और प्रत्यय मूल शब्दों के बाद में लगकर नए शब्दों का निर्माण करते हैं अथवा मूल शब्दों के अर्थों में विशेषता लाते हैं। 

प्रत्यय हिन्दी भाषा व्याकरण के अंग हैं। ये नए और सार्थक शब्दों का निर्माण करने के साथ-साथ भाषा सौन्दर्य को बढ़ाने में भी मदद करते हैं। प्रत्ययों के प्रयोग और चलन से हिन्दी भाषा का दायरा अधिक विशाल हुआ है।

Pratyay ke Bhed प्रत्यय के भेद या प्रकार

हिन्दी भाषा में प्रत्यय के दो प्रकार माने जाते हैं-

(1) कृत् प्रत्यय

(2) तद्धित प्रत्यय

(1) कृत् प्रत्यय

ऐसे प्रत्यय जो क्रिया या धातु शब्दों के बाद प्रयुक्त होते हैं, कृत् प्रत्यय कहे जाते हैं। कृत् प्रत्यय के जुडने से जो शब्द बनते हैं उन्हे ‘कृदंत कहते हैं।

चूंकि कृत् प्रत्यय क्रिया या धातु के बाद लगते हैं इसलिए ये प्रत्यय सदा क्रिया या धातु को ही नए अर्थ या रूप देते हैं। कृत् प्रत्यय संज्ञा एवं विशेषण शब्दों का निर्माण करते हैं।

कृत् प्रत्यय के उदाहरण

क्रिया + कृत् प्रत्यय

क्रियाकृत् प्रत्ययकृदंत शब्द
कृतव्यकर्तव्य
दायत्देय
गानावालागानेवाला
होनाहारहोनहार
रखनाऐयारखैया
छलनाइयाछलिया
जड़नाइयाजड़िया
खेनावैयाखेवैया

कृत् प्रत्यय के भेद

कृत् प्रत्यय के भेद या प्रकार को दो प्रकार से समझा जा सकता है। पहला वह प्रकार है जिसमें क्रिया पदों या शब्दों के अंत में लगने वाले कृत् प्रत्ययों के अनुसार बनने वाले संज्ञा शब्दों का वर्गिकरण है।

इस आधार पर कृत् प्रत्यय 5 प्रकार के होते हैं-

(i) कर्तृवाचक कृत् प्रत्यय

(ii) कर्मवाचक कृत् प्रत्यय

(iii) करणवाचक कृत् प्रत्यय

(iv) भाववाचक कृत् प्रत्यय

(v) क्रियाद्योतक कृत् प्रत्यय

उपरयुक्त कृत् प्रत्ययों के भेड़ों के अलावा कृत् प्रत्यय के प्रकार हिन्दी में रूप के अनुसार भी होते हैं-

  1. विकारी
  2. अव्यय या अविकारी

इसके अतिरिक्त पुनः विकारी कृदंत (कृत् +अंत = कृदंत अर्थात कृत् प्रत्यय के अंत से बने शब्द) के 4 भेद होते हैं-

(i) क्रियार्थक संज्ञा

(ii) कर्तृवाचक संज्ञा

(iii) वर्तमानकालिक कृदन्त

(iv) भूतकालिक कृदन्त

ऊपर दिये गए कृत् प्रत्यय के भेड़ों के बारे में हम आगे विस्तार से चर्चा करेंगे। पहले हम हिन्दी के कृत् प्रत्ययों की पूरी लिस्ट यहाँ देख लेते हैं।

हिन्दी के कृत् प्रत्यय

अ, अंत, अक्कड़, आ, आई, आहट, इयल, ई, इया, ऊ, आड़ी, आऊ, आलू, अंकु, आक, आका, आकू, आन, आनी, आप, आपा, आव, आवट, आवना, आवा, आस, गी, त, ता, ती, न्ती, एरा, ऐरा, ऐल, ओड़ा, ओड़, औला, औली, औना, औनी, औटी, आवनी, औवल, क, का, की, न, ना, नी, वन, वाँ, वाला, वैया, सार, हारा, हार, हा, इत्यादि।

अब आप हिन्दी भाषा में प्रयोग होने वाले अधिकांश कृत् प्रत्ययों की लिस्ट देख चुके हैं। आइए अब कृत् प्रत्ययों के पांचों प्रकारों के बारे में विस्तार से जान लेते हैं।

(i) कर्तृवाचक कृत् प्रत्यय

हिन्दी वाक्य में कर्ता का बोध कराने वाले प्रत्यय को कर्तृवाचक कृत् प्रत्यय कहा जाता है। कर्तृवाचक कृदंत विशेषण शब्द बनाने के लिए किसी भी धातु के अंत में आक, आका, अंकू, आऊ, आड़ी, आलू, ऐत, आकू, अक्कड़, वन, इया, इयल, एरा, वाला, वैया, सार, हार, हारा इत्यादि प्रत्यय जोड़ दिये जाते हैं।

इस प्रकार कर्तृवाचक कृत् प्रत्यय जुडने से कर्तृवाचक कृदंत विशेषण पदों का निर्माण होता है। जैसे-

प्रत्ययधातुकृदंत-रूप
अंकूउड़उड़ंकू
आऊटिकटिकाऊ
आकतैरतैराक
आकालड़लड़का
आड़ीखेलखिलाड़ी
आलूझगड़झगड़ालू
इयाबढ़बढ़िया
इयलअड़अड़ियल
इयलमरमरियल
ऐतलड़लड़ैत
ऐयाबचबचैया
ओड़हँसहँसोड़
ओड़ाभागभगोड़ा
अक्कड़पीपिअक्कड़
वनसुहासुहावन
वालापढ़पढ़नेवाला
वैयागागवैया
सारमिलमिलनसार
हाररखराखनहार
हारारोरोवनहारा

(ii) कर्मवाचक कृत् प्रत्यय

कर्मवाचक कृत् प्रत्यय ऐसे प्रत्यय होते हैं जिनके उपयोग से कर्म वाचक कृदंत शब्दों का निर्माण होता है। जैसे- ना प्रत्यय से – सूँघना, पढ़ना, खाना, जाना इत्यादि।

हिन्दी भाषा के व्याकरण में कर्मवाचक कृत्-प्रत्यय शब्द बनाने के लिए मूल धातु के अन्त में ना, नी औना इत्यादि जैसे प्रत्यय लगा दिये जाते हैं। कर्मवाचक कृत्-प्रत्यय के उदाहरण देखिये-

प्रत्ययधातुकृदंत-रूप
नाबोल, ओढ़, पढ़बोलना, ओढ़ना, पढ़ना
नीकथ, छल, ओढ़, मथकथनी, छलनी, ओढ़नी, मथनी
औनाखेल, बिछखिलौना, बिछौना

(iii) करणवाचक कृत् प्रत्यय

हिन्दी भाषा में इस करण वाचक प्रत्यय के उपयोग से वाक्य में कार्य करने वाले साधनों के बारे में जानकारी मिलती है। उदाहरण के लिए ई एक करणवाचक कृत् प्रत्यय है जिससे – खांसी, फाँसी, धुलाई, सोती, छोटी, रेती, इत्यादि शब्दों का निर्माण हुआ है।

व्याकरण में जब करणवाचक कृत्-प्रत्यय बनाया जाता है तो धातु के अन्त में आ, आनी, ई, ऊ, औटी, न, ना, नी इत्यादि प्रत्यय लगाना पड़ता हैं। करणवाचक कृत्-प्रत्यय के उदाहरण-

प्रत्ययधातुकृदंत-रूप
भूलभूला
आनीमथमथानी
खेतखेती
झाड़झाड़ू
औटीकसकसौटी
ठेलठेलन
नाबोलबोलना
नीभीलभीलनी

(iv)भाववाचक कृत् प्रत्यय

हिन्दी भाषा वाक्यों में जो प्रत्यय धातुओं के मूल के बाद (अंत) में जुड़ कर भाव वाचक संज्ञाओं का निर्माण करते हैं, उन्हे भाववाचक कृदंत प्रत्यय कहा जाता है तथा उनसे बने शब्दों को भाववाचक कृदंत संज्ञा कहते हैं।

जब हमें भाववाचक कृत्-प्रत्यय बनाने होते हैं तो धातु के अन्त में औनी, क, की, अ, आन, आप, आपा, आव, आहट, ई, औता, औती, आवा, आस, आवना, अन्त, आ, आई, आवनी, आवट, औवल, गी, त, ती, न, नी इत्यादि प्रत्ययों को जोड़ दिया जाता है। भाववाचक कृदंत प्रत्यय के उदाहरण देखिये-

प्रत्ययधातुकृदंत-रूप
मरमरा
अन्तभिड़भिड़न्त
फेरफेरा
आईपढ़पढ़ाई
आनकटकटान
आपविलविलाप
आपाबूढ़बुढ़ापा
आवबहबहाव
आवाछलछलावा
आसभड़भड़ास
आवनापापावना
आवनीछवछावनी
आवटतरतरावट
आहटचिल्लचिल्लाहट
खोलखोली
औतासमझसमझौता
औतीछिनछिनौती
औवलभूलभुलौवल
औनीघिनघिनौनी
बैठबैठक
कीछुटछुटकी
गीदेनदेनगी
बचबचत
तीबढ़बढ़ती
लेलेन
नीटहटहनी

(v) क्रियाद्योतक कृत् प्रत्यय

क्रियाद्योतक कृत् प्रत्यय वे प्रत्यय होते हैं जिनसे बने शब्दों से किसी क्रिया के होने का बोध होता हो। हिन्दी भाषा वाक्यों में क्रियाद्योतक कृदन्त विशेषण वाले शब्द बनाने के लिए ‘आ’, एवं ‘ता’ आदि प्रत्ययों का प्रयोग होता है।

यहाँ ध्यान देने योग्य है कि क्रियाद्योतक कृत् प्रत्यय के अंतर्गत ‘आ’ प्रत्यय भूतकाल का और ‘ता’ प्रत्यय वर्तमानकाल का द्योतक होता है। इसलिए क्रियाद्योतक कृत् प्रत्यय के दो प्रकार माने जाते है-

(i) वर्तमानकालिक क्रियाद्योतक कृदन्त विशेषण।

(ii) भूतकालिक क्रियाद्योतक कृदन्त विशेषण।

आइए कुछ उदाहरण देख लेते हैं-

वर्तमानकालिक विशेषण शब्द-

प्रत्ययधातुवर्तमानकालिक विशेषण
ताकहकहता
ताकरकरता
तागागाता

भूतकालिक विशेषण शब्द-

प्रत्ययधातुभूतकालिक विशेषण
गढ़गढ़ा
सोसोया
गागाया

तद्धित प्रत्यय

वाक्य में जो प्रत्यय संज्ञा सर्वनाम और विशेषण के अन्त (बाद) में लगते हैं, उन्हे ‘तद्धित’ प्रत्यय कहते हैं। तद्धित प्रत्यय क्रिया अथवा धातु के अंत में नहीं लगते हैं। वे सिर्फ संज्ञा, सर्वनाम या विशेषण शब्दों के अंत में ही जोड़े जाते हैं।

उनके मेल से बने शब्द को ‘तद्धितान्त। जैसे-

सम + ता = समता                                                                                                                             अच्छा + आई = अच्छाई                                                                                                                    धन + ई = धनी                                                                                                                                 गुरु + इष्ट = गरिष्ठ                                                                                                                              

तद्धित प्रत्यय के प्रकार या भेद

हिंदी भाषा व्याकरण में तद्धित प्रत्यय के 9 प्रकार या भेद माने जाते हैं-

(1) कर्तृवाचक तद्धित प्रत्यय                                                                                                                          (2) भाववाचक तद्धित प्रत्यय                                                                                                                      (3) संबंधवाचक तद्धित प्रत्यय                                                                                                                        (4) गणनावाचक तद्धित प्रत्यय                                                                                                                    (5) गुणवाचक तद्धित प्रत्यय                                                                                                                        (6) स्थानवाचक तद्धित प्रत्यय                                                                                                                         (7) ऊनवाचक तद्धित प्रत्यय                                                                                                                              (8) सादृश्यवाचक तद्धित प्रत्यय                                                                                                          (9) अपत्यवाचक तद्धित प्रत्यय

आइए अब तद्धित प्रत्यय के 9 प्रकारों को विस्तार से समझते हैं।

(1) कर्तृवाचक तद्धित प्रत्यय-

जो प्रत्यय वाक्य में किसी संज्ञा सर्वनाम अथवा विशेषण के अन्त (बाद) में लगकर कर्तृवाचक संज्ञा का निर्माण करते हैं अथवा कर्ता का बोध कराते हैं, उन्हे कर्तृवाचक तद्धित प्रत्यय कहा जाता है।

कर्तृवाचक तद्धितान्त संज्ञा का निर्माण किसी संज्ञा सर्वनाम अथवा विशेषण के अन्त में आर, इया, ई, एरा, हारा, इत्यादि तद्धित-प्रत्यय लगाकर किया जाता है। जैसे-

प्रत्ययसंज्ञा-विशेषणकर्तृवाचक संज्ञाएँ
आरसोनासुनार
आरलोहालुहार
इयासन्देससंदेसिया
तमोलतमोली
तेलतेली
हारालकड़ीलकड़हारा
एरासाँपसँपेरा
एराकाँसाकसेरा
इयापरदेसपरदेसिया

आइए अब जानते हैं कि भाववाचक तद्धित प्रत्यय किसे कहते हैं।

(2) भाववाचक तद्धित प्रत्यय-

हिन्दी वाक्य में भाव का बोध कराने वाले प्रत्ययों को भाववाचक तद्धित प्रत्यय कहते हैं। भाववाचक तद्धित प्रत्यय वाले शब्द बनाने के लिए संज्ञा के अन्त में आ, आई, आन, आयत, आयँध, आरा, आवट, ई, एरा, औती, त, ती, पन, आस, आहट, पा, स इत्यादि तद्धित-प्रत्यय लगाए जाते हैं। जैसे-

प्रत्ययसंज्ञा-विशेषणभाववाचक संज्ञाएँ
झूठझूठा
आईबड़बड़ाई
आयतलिंगलिंगायत
आरानिपटनिपटारा
आसमीठामिठास
आहटघबड़घबडाहट
खेतखेती
एराअन्धअँधेरा
औतीबापबपौती
खपखपत
पनसाँवलासांवलापन
पनलड़कालड़कपन
पामोटामोटापा

अब आप भाववाचक तद्धित प्रत्यय के बारे में जान चुके हैं। आइए अब समझते हैं कि संबंधवाचक तद्धित प्रत्यय क्या होता है।

(3) संबंधवाचक तद्धित प्रत्यय-

जिन प्रत्ययों से संबंध का बोध होता हो, उन्हे संबंधवाचक तद्धित प्रत्यय कहा जाता है। संबंधवाचक तद्धित प्रत्यय वाले शब्द बनाने के लिए संज्ञा मूल शब्दों के अन्त में आल, हाल, ए, एरा, एल, औती, जा इत्यादि तद्धित-प्रत्यय जोड़ दिये जाते हैं। जैसे-

प्रत्ययसंज्ञासम्बन्धवाचक संज्ञाएँ
आलससुरससुराल
हालनानाननिहाल
औतीबापबपौती
जाभाईभतीजा
एराफूफाफुफेरा
एलधकधकेल

संबंधवाचक तद्धित प्रत्यय के बारे में जानकारी लेने के बाद अब आइए जानते हैं कि गणनावाचक तद्धित प्रत्यय किसे कहते हैं।

(4) गणनावाचक तद्धित प्रत्यय-

जिन प्रत्ययों से बने शब्दों द्वारा संख्या का बोध होता हैं, उन्हे गणनावाचक तद्धित प्रत्यय कहते हैं। गणनावाचक तद्धित प्रत्यय वाले शब्द बनाने के लिए संज्ञा-पदों के अंत में ला, रा, था, वाँ, हरा इत्यादि प्रत्यय जोड़ दिये जाते हैं। जैसे-

प्रत्ययगणनावाचक संज्ञाएँ
लापहला
रादूसरा, तीसरा
थाचौथा
वाँसातवाँ, आठवाँ, दसवाँ, बाइसवाँ
हरादुहरा, तिहरा

(5) गुणवाचक तद्धित प्रत्यय-

वे तद्धित प्रत्यय जिनसे किसी गुण का बोध होता हो, गुणवाचक तद्धित प्रत्यय कहलाते हैं। गुणवाचक तद्धित प्रत्यय वाले शब्द बनाने के लिए संज्ञा मूल शब्दों के अन्त में आ, इत, ई, ईय, ईला, वान इन जैसे प्रत्ययों को जोड़ दिया जाता है। जैसे-

प्रत्ययसंज्ञा-विशेषणगुणवाचक संज्ञाएँ
ठंड, प्यास, भूख, रुखठंडा, प्यासा, भूखा, रूखा
इतहर्ष, पुष्प, आनंद, क्रोध, संयमहर्षित, पुष्पित, आनंदित, क्रोधित, संयमित
लोभ, क्रोध, जंगल, भारलोभी, क्रोधी, जंगली, भारी
ईयशासक, भारत, अनुकरण, रमणशासकीय, भारतीय, अनुकरणीय, रमणीय
ईलारंग, चमक, भड़क, रंगरंगीला, चमकीला, भड़कीला, रंगीला
वानयश, गुण, धन, रूपयशवान, गुणवान, धनवान, रूपवान

(6) स्थानवाचक तद्धित प्रत्यय-

जिन प्रत्ययों से किसी स्थान का बोध होता है, स्थानवाचक तद्धित प्रत्यय कहे जाते हैं। स्थानवाचक तद्धित प्रत्यय वाले शब्द बनाने के लिए संज्ञा मूल शब्दों के अन्त में ई, वाला, इया, तिया जैसे प्रत्ययों को जोड़ दिया जाता है। जैसे-

प्रत्ययसंज्ञा-विशेषणस्थानवाचक संज्ञाएँ
जापान, गुजरात, बंगालजापानी, गुजराती, बंगाली
वालाडेरा, दिल्ली, बनारसडेरेवाला, दिल्लीवाला, बनारसवाला
इयाबनारस, मुंबई, जयपुर, नागपुरबनारसिया, मुंबइया, जयपुरिया, नागपुरिया
तियाकलकत्ता, तिरहुतकलकतिया, तिरहुतिया

(7) ऊनवाचक तद्धित प्रत्यय

ऊनवाचक तद्धित प्रत्यय के जुडने से ऐसे शब्दों का निर्माण होता है जो किसी वस्तु की लघुता, प्रियता, हीनता इत्यादि के भाव बताने में समर्थ होते हैं। ऊनवाचक तद्धितान्त संज्ञा वाले शब्द बनाने के लिए संज्ञा के अन्त में आ, इया, ई, ओला, क, की, टा, टी, ड़ा, ड़ी, री, ली, वा, सा जैसे प्रत्ययों को जोड़ दिया जाता है। जैसे-

प्रत्ययसंज्ञा-विशेषणऊनवाचक संज्ञाएँ
ठाकुरठकुरा
इयाखाटखटिया
ढोलकढोलकी
ओलासाँपसँपोला
ढोलढोलक
कीकनकनकी
टाचोरचोट्टा
टीबहूबहुटी
ड़ाबाछाबछड़ा
ड़ीटाँगटँगड़ी
रीकोठाकोठरी
लीटीकाटिकली
वाबच्चाबचवा
सामरामरा-सा

(8) सादृश्यवाचक तद्धित प्रत्यय-

जिन तद्धित प्रत्ययों से बने शब्दों से समता या समानता का बोध होता है, उन्हे सादृश्यवाचक तद्धित प्रत्यय कहते हैं। सादृश्यवाचक तद्धित प्रत्यय वाले शब्दों को बनाने के लिए संज्ञा मूल शब्दों के अन्त में सा, हरा इत्यादि प्रत्ययों को जोड़ दिया जाता है। जैसे-

प्रत्ययसंज्ञासादृश्यवाचक संज्ञाएँ
सालाल, नीलालाल-सा, नीला-सा
हरासोनासुनहरा

(9) अपत्यवाचक तद्धित प्रत्यय

जिन तद्धित प्रत्ययों में किसी के नाम का प्रयोग होता है अर्थात जो किसी नाम के अंत में तद्धित प्रत्यय जोड़ने से बनती हैं, उन्हे अपत्यवाचक संज्ञा और ऐसे प्रत्ययों को अपत्यवाचक तद्धित प्रत्यय कहा जाता है। जैसे-

तद्धित प्रत्ययव्यक्तिवाचक संज्ञाअपत्यवाचक संज्ञा शब्द
वसुदेववसुदेव
मनुमानव
कुरुकौरव
आयनबदरबादरायण
पृथापार्थ

हिन्दी में उपसर्ग के समान ही तद्धित प्रत्यय अपने स्त्रोतों के अनुसार तीन तरह के माने गए हैं-संस्कृत, हिन्दी और उर्दू (विदेशी)।

प्रकार्य के अनुसार प्रत्यय के भेद

प्रत्यय के भेद या प्रकार को प्रकार्य की दृष्टि से भी परिभाषित किया जा सकता है। प्रकार्य के अनुसार हिन्दी में प्रत्यय के दो भेद होते हैं-

1) व्युत्पादक प्रत्यय   2) रुपसाधक प्रत्यय

1) व्युत्पादक प्रत्ययों के कई भेद होते हैं। इनमें लिंग बोधक प्रत्यय, स्तर बोधक प्रत्यय, व्यवसाय सूचक प्रत्यय, गुणवाचक विशेषण बनाने वाले प्रत्यय इत्यादि शामिल हैं। आइए प्रत्यय के इन रूपों के बारे में जान लेते हैं।

  1. हिन्दी भाषा में बहुत से ऐसे पुल्लिंग शब्द हैं जिनके स्त्रीलिंग शब्दों के निर्माण के लिए लिंग बोधक प्रत्यय जोड़ दिया जाता है। कुछ प्रमुख उदाहरण देखिये-

ई प्रत्यय:

दास-दासी                                                                                                                                          देव-देवी                                                                                                                                         पुत्र-पुत्री

‘आ’ के स्थान पर ‘ई’:

लड़का-लड़की                                                                                                                                    घोड़ा-घोड़ी

‘आ’ के स्थान पर ‘इया’:

डिब्बा-डिबिया                                                                                                                                       गुड्डा-गुड़िया

शब्दों में ‘इन’ जोड़कर:

माली-मालिन                                                                                                                                         सुनार-सुनारिन                                                                                                                                कुम्हार-कुम्हारिन                                                                                                                                 लोहार लोहारिन

‘नी’ या ‘इनी’ जोड़कर

हंस-हंसिनी                                                                                                                                           चोर-चोरनी                                                                                                                                            शेर-शेरनी

‘आइन’ अथवा ‘आनी’ जोड़कर:

देवर-देवरानी                                                                                                                                        पंडित-पंडिताइन                                                                                                                       लाला-ललाइन                                                                                                                                 ठाकुर-ठकुराइन

संस्कृत पदों में ‘आ’ प्रत्यय जोड़कर:

प्रिय-प्रिया                                                                                                                                          शिष्य-शिष्या

‘क’ से अंत होने वाले शब्दों में ‘इका’ जोड़कर:

नायक-नायिका                                                                                                                                   लेखक-लेखिका                                                                                                                                       गायक-गायिका                                                                                                                                 सेवक-सेविका

स्त्रीलिंग पदों के अंत में ‘आ’ जोड़कर:

मौसी-मौसा                                                                                                                                            भैंस-भैंसा                                                                                                                                           मामी-मामा

  • स्तर बोधक प्रत्यय: विशेषणों से जुडने वाले ऐसे प्रत्यय जो उनके स्तर का तुलनात्मक बोध कराते हैं, स्तर बोधक प्रत्यय कहे जाते हैं। हिन्दी भाषा व्याकरण में मात्र 2 स्तर बोधक प्रत्यय हैं-‘तर’ और ‘तम’। कुछ उदाहरण देखिये-

श्रेष्ठ       श्रेष्ठतर    श्रेष्ठतम                                                                                                                                 लघु      लघुतर    लघुतम                                                                                                                                उच्च     उच्चतर   उच्चतम

3. व्यवसाय, पेशा या नौकरी सूचक प्रत्यय

(क) सोना + आर = सोनार

(ख) लोहा + आर = लुहार

(ग) दूध + वाला = दूधवाला

(घ) पान + वाला = पानवाला

इस प्रकार हम देखते हैं कि किसी विशेष व्यवसाय या पेशे से जुड़ी शब्दावली में ‘वाला’ अथवा ‘आर’ प्रत्यय लगा देने से नए शब्द बन जाते हैं।

4. प्रत्यय जो गुणवाचक विशेषण निर्माण करते हैं

ये प्रत्यय इस प्रकार हैं:

लु- कृपालु, दयालु, झगड़ालू, ईर्ष्यालु, इत्यादि।                                                                                                ई- आसमानी, बैंगनी, बसंती                                                                                                                ऊ/आरू-गँवारू, बाजारू                                                                                                                   इया-बढ़िया, घटिया                                                                                                                             आऊ-बिकाऊ, टिकाऊ                                                                                                                           वना-मनभावना, लुभावना, डरावना, सुहावना इत्यादि।

5.   कर्तृवाचक संज्ञा के प्रत्यय

आक- उड़ाक, तैराक                                                                                                                       अक्कड़-घुमक्कड़, बुझक्कड़, भुलक्कड़                                                                                                   आकू-लड़ाकू, पढ़ाकू                                                                                                                           इयल-सड़ियल, मरियल, अड़ियल                                                                                                             वैया-सवैया, खेवैया, गवैया इत्यादि।

6. भाववाचक संज्ञा निर्माण करने वाले प्रत्यय

आस-मिठास, खटास, उदास                                                                                                                     ता-उदारता, आवश्यकता, मित्रता                                                                                                                  त्व-घनत्व, ममत्व, अपनत्व                                                                                                                        पन-कड़कपन, बचपन, अपनापन, लड़कपन, आवारापन                                                                               आई-रुलाई, चढ़ाई, खुदाई, बधाई, बढ़ाई, भलाई, कठिनाई                                                                           पा-बुढ़ापा, मोटापा                                                                                                                               आवट-सजावट, मिलावट, बनावट, अदावत                                                                                             आहट-चिड़चिड़ाहट, झल्लाहट, घबराहट

इस लेख में आपको Pratyay kise kahate hain प्रत्यय किसे कहते हैं और प्रत्यय क्या होता है के बारे में विस्तार से समझाया गया है। प्रत्यय के भेद जैसे कि कृत् प्रत्यय और तद्धित प्रत्यय के बारे में भी आपने जान लिया है। इसके अतिरिक्त प्रत्यय के प्रयोग से शब्दों के निर्माण के बारे में भी आप जान गए हैं। हिन्दी भाषा और व्याकरण में प्रत्यय के महत्व से भी आप परिचित हो गए हैं। प्रत्यय के प्रयोग से नए शब्दों का निर्माण होता है।

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