Mangal Bhavan Amangal Hari | मंगल भवन अमंगल हारी

Mangal Bhavan Amangal Hari ‘मंगल भवन अमंगल हारी’ इस चौपाई के अर्थ में तुलसीदासजी ने बड़े सुंदर भाव से दशरथनंदन श्रीराम से आत्मनिवेदन किया है।‘मंगल भवन अमंगल हारी’ श्रीरामचरितमानस की एक प्रसिद्ध चौपाई है जिसे बड़े ही सुंदर ढंग से गीत के रूप में पेश किया गया था। इस गीत के संगीतकार स्वर्गीय रवीन्द्र जैन थे आइए इस चौपाई का अर्थ सहित पूरी व्याख्या, Lyrics और उसका संदर्भ जानते हैं।

Mangal Bhavan Amangal Hari मंगल भवन अमंगल हारी

गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित श्रीरामचरितमानस में दोहों, चौपाइयों और श्लोकों के माध्यम से जीवन की अनुभूतियों को प्रकट किया गया है। ऐसी ही एक चौपाई है “मंगल भवन अमंगल हारी” जिसमें मंगल के धाम भगवान श्रीराम से अपने अमंगलों को हरने की विनती की गई है।

Mangal Bhavan Amangal Hari | मंगल भवन अमंगल हारी

आइए अब इस चौपाई का सही अर्थ जानते हैं-

Mangal Bhavan Amangal Hari Meaning मंगल भवन अमंगल हारी का अर्थ

रामचरितमानस की चौपाई ‘मंगल भवन अमंगल हारी । द्रवउ सो दसरथ अजिर बिहारी ॥

’ का सही अर्थ निम्नलिखित है-

मंगल के धाम, अमंगल के हरने वाले और श्रीदशरथजी के आँगन

में खेलने वाले वे (बालरूप) श्रीराम मुझ पर कृपा करें।“

नोट-चौपाई का यह अर्थ गीताप्रेस गोरखपुर से प्रकाशित श्रीरामचरितमानस में दिये गए अर्थ के अनुसार ही है। अन्य प्रकाशनों से प्रकाशित श्रीरामचरितमानस में भी यही अर्थ दिया गया है।

यहाँ ‘मंगल भवन अमंगल हारी’ का अर्थ है मंगल के धाम (या जिनमें सभी मंगल समाहित हैं) और अमंगल को हरने वाले। द्रवहु का अर्थ है ‘द्रवित हों या अथवा कृपा करें। अजिर ‘आँगन’ को कहा जाता है और ‘बिहारी’ का अर्थ है विहार करने वाला या घूमने वाला।

गोस्वामी तुलसीदास ने लिखा है कि भगवान शंकर श्रीराम के बारे में कहते हैं कि वे समस्त मंगलों के धाम हैं और सभी अमंगलों और कष्टों को नष्ट करने वाले या हरने वाले हैं। श्रीदशरथ जी के आँगन में जो खेलने वाले हैं वे बालरूपी श्रीरामचंद्रजी मुझ पर कृपा करें।

मंगल भवन अमंगल हारी द्रवहु सुदसरथ अजर बिहारी

‘मंगल भवन अमंगल हारी’ पूरी चौपाई श्रीरामचरितमानस के बालकांड में इस तरह वर्णित है:

बंदउँ बालरूप सोई रामू ।

सब सिधि सुलभ जपत जिसु नामू ॥  

                                                                  मंगल भवन अमंगल हारी ।

द्रवउ सो दसरथ अजिर बिहारी ॥

Mangal Bhavan Amangal Hari | मंगल भवन अमंगल हारी

यह चौपाई बालकांड में तब आती है जब भगवान शंकर भगवान श्रीराम के गुणों का बखान करते हैं और उन्हे प्रणाम करते हैं। माता पार्वती के पूछने पर भगवान शिव शंकर ने मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम की कथा सुनाने का विचार किया और विनती की। गोस्वामी तुलसीदास ने प्रबंध काव्य के रूप में भगवान शंकर और माता पार्वती के संवाद के द्वारा राम कथा का वर्णन किया है। उसी प्रसंग में यह चौपाई आती है।

इंटरनेट पर किसी किसी वेबसाइट में इस चौपाई में ‘अजिर बिहारी’ के स्थान पर ‘अचर बिहारी’ दिया गया है जोकि गलत है। श्रीरामचरितमानस में मूल रूप से ‘अजिर बिहारी’ शब्दों का ही उल्लेख हुआ है। इसलिए ‘द्रवउ सो दसरथ अजिर बिहारी’ कहना ही उचित है। त्रुटिपूर्ण और मिथ्या चौपाइयों से भाव और अर्थ में भिन्नता पैदा हो जाती है। इसलिए हमेशा “मंगल भवन अमंगल हारी । द्रवउ सो दसरथ अजिर बिहारी” इस सही चौपाई का ही पठन पाठन करना करवाना चाहिए।

मंगल भवन अमंगल हारी रामचरितमानस

भारतवर्ष में प्रसिद्ध चौपाई ‘मंगल भवन अमंगल हारी’ तुलसीदास द्वारा रचित “श्रीरामचरितमानस” के बालकांड में वर्णित है। यह चौपाई बालकांड के 111वें श्लोक के बाद दूसरी चौपाई में वर्णित है। भारतीय शास्त्रीय परंपरा में धार्मिक ग्रन्थों की रचना शिव-पार्वती संवाद या विष्णु-लक्ष्मी संवाद आदि के रूप में की गई है।

रामायण और रामचरितमानस में भी इसी परंपरा का पालन किया गया है। ‘मंगल भवन अमंगल हारी’ चौपाई भी शिव-पार्वती संवाद में वर्णित है। मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम की कथा जानने के लिए भगवती पार्वती ने जब भगवान शंकर से निवेदन किया तब शिव-शंकर ने श्रीराम को प्रणाम करते हुए यह गुणगान किया था। 

Mangal Bhavan Amangal Hari | मंगल भवन अमंगल हारी

श्रीरामचरितमानस का स्थान श्रीराम सगुण भक्तिधारा में सर्वोच्च है। इस ग्रंथ में वर्णित प्रभु की लीलाओं और जीवन वृत्त से भाव-विभोर होकर भारत में सैकड़ों वर्षों से अनगिनत मानव अपने जीवन में आदर्श स्थापित कर रहे हैं। इससे प्रेरणा पाकर व्यक्ति भक्ति के माध्यम से ईश्वर तक पहुँचने का प्रयत्न करते हैं।

यही कारण है कि घरों में नित्य ही श्रीरामचरितमानस का पाठ किया जाता है। विशेष अवसरों पर 24 घंटे में मानस का पाठ भी किया जाता है जिसमें ‘मंगल भवन अमंगल हारी’ का उच्चारण सुनने को मिलता है। इस चौपाई के माध्यम से भगवान राम से प्रार्थना और विनती की जाती है कि वे हमारे अमंगलों का नाश करें और हम पर कृपा करें।

Mangal Bhavan Amangal Hari Lyrics

‘गीत गाता चल’ फिल्म में संगीतकार रवीन्द्रजैन ने श्रीरामचरितमानस की कई प्रसिद्ध चौपाइयों के अंश लेकर एक लोकप्रिय गीत की रचना की थी। इस गीत के Lyrics हिन्दी और इंग्लिश में दिये गए हैं। लीरिक्स के साथ चौपाइयों के हिन्दी में अर्थ भी दिये गए हैं।

हो…मंगल भवन अमंगल हारी

द्रवहु सुदसरथ अजिर बिहारी

अर्थ : मंगल के धाम, अमंगल के हरने वाले और श्रीदशरथजी के आँगन में खेलने वाले वे (बालरूप) श्रीराम मुझ पर कृपा करें।

हो…होइहि सोइ जो राम रचि राखा

को करि तर्क बढ़ावै साखा

अर्थ : जो भगवान श्री राम ने रच रखा है ,वही होगा | तर्क करके कौन शाखा (विस्तार) बढ़ावै।

हो…धीरज धरम मित्र अरु नारी

आपद काल परखिये चारी

अर्थ : बुरे समय में यह चार चीजे परखी जाती है- धैर्य , धर्म, मित्र  और स्त्री।

हो…जेहि के जेहि पर सत्य सनेहू

सो तेहि मिलइ न कछु सन्देहू

अर्थ : जिसका जिसपर सच्चा प्रेम होता है, वह उसे अवश्य प्राप्त होता है, इसमें कोई संदेह नहीं है।

हो…जाकी रही भावना जैसी

प्रभु मूरति देखी तिन तैसी

अर्थ : जिनकी जैसी प्रभु के लिए भावना थी, उन्हें प्रभु रूप वैसा ही दिखाई दिया।

हो…रघुकुल रीत सदा चली आई

प्राण जाए पर वचन न जाई

अर्थ : रघुकुल परम्परा में हमेशा वचनों को प्राणों से ज्यादा महत्व दिया गया है। प्राण भले ही चले जाएँ किन्तु वचन नहीं जाना चाहिए।

हो…हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता

कहहि सुनहि बहुविधि सब संता

अर्थ : हरी (ईश्वर या भगवान विष्णु) अंनत हैं और उनकी कथाएँ भी अनंत हैं। सब संत उनका (कथाओं का) कई प्रकार से कथन और श्रवण करते हैं।

Mangal Bhavan Amangal Hari Lyrics in Hindi

Mangal Bhavan Amangal Hari Lyrics in Hindi में यहाँ दिये गए हैं-

हो.. मंगल भवन अमंगल हारी

द्रवहु सुदसरथ अजिर बिहारी

राम सिया राम सिया राम जय जय राम

राम सिया राम सिया राम जय जय राम

हो…होइहि सोइ जो राम रचि राखा।

को करि तर्क बढ़ावै साखा॥

राम सिया राम सिया राम जय जय राम

राम सिया राम सिया राम जय जय राम

हो…धीरज धरम मित्र अरु नारी

आपद काल परखिये चारी

राम सिया राम सिया राम जय जय राम, राम

राम सिया राम सिया राम जय जय राम

हो…जेहि के जेहि पर सत्य सनेहू

सो तेहि मिलइ न कछु सन्देहू

राम सिया राम सिया राम जय जय राम, राम

राम सिया राम सिया राम जय जय राम

हो…जाकी रही भावना जैसी

प्रभु मूरति देखी तिन तैसी

राम सिया राम सिया राम जय जय राम, राम

राम सिया राम सिया राम जय जय राम

हो…रघुकुल रीत सदा चली आई

प्राण जाए पर वचन न जाई

राम सिया राम सिया राम जय जय राम, राम

राम सिया राम सिया राम जय जय राम

हो.. हरी अनंत हरी कथा अनंता

कहही सुनही बहुविधि सब संता

राम सिया राम सिया राम जय जय राम, राम

राम सिया राम सिया राम जय जय राम

राम सिया राम सिया राम जय जय राम

Mangal Bhavan Amangal Hari Lyrics in English

Mangal Bhavan Amangal Haari

Dravahu Su Dasharath Ajir Bihari

Ram Siya Ram Siya Ram Jai Jai Ram

Ram Siya Ram Siya Ram Jai Jai Ram

Ho.. Hoi Hai Wohi Jo Ram Rachi Raakha

Ko Kari Tark Badhave Saakha

Ram Siya Ram Siya Ram Jai Jai Ram

Ram Siya Ram Siya Ram Jai Jai Ram

Ho.. Dheeraj Dharam Mirta Aru Naari

Aapad Kaal Parakhiye Chaari

Ram Siya Ram Siya Ram Jai Jai Ram, Ram

Ram Siya Ram Siya Ram Jai Jai Ram

Ho.. Jehike Jehi Par Satya Sanehu

So Tehi Milahi Na Kachhu Sandehu

Ram Siya Ram Siya Ram Jai Jai Ram, Ram

Ram Siya Ram Siya Ram Jai Jai Ram

Ho.. Jaaki Rahi Bhavana Jaisi

Prabhu Murati Dekhi Tin Taisi

Ram Siya Ram Siya Ram Jai Jai Ram, Ram

Ram Siya Ram Siya Ram Jai Jai Ra)

Ho.. Raghukul Reet Sada Chali Aayi

Pran Jaaye Par Vachan Na Jaayi

Ram Siya Ram Siya Ram Jai Jai Ram, Ram

Ram Siya Ram Siya Ram Jai Jai Ram)

Ho.. Hari Anant Hari Katha Anantaa

Kahahi Sunahi Bahuvidhi Sab Santa

Ram Siya Ram Siya Ram Jai Jai Ram, Ram

Ram Siya Ram Siya Ram Jai Jai Ram

Ram Siya Ram Siya Ram Jai Jai Ram

‘मंगल भवन अमंगल हारी’ गीत के बोल हिन्दी और इंग्लिश दोनों भाषाओं में आपने देख लिए हैं। साथ ही यह पूरी चौपाई भी आपने पढ़ी। आपने इस चौपाई का रामचरितमानस में संदर्भसहित वर्णन के बारे में पढ़ा। आपने यह भी जाना कि ‘गीत गाता चल’ फिल्म में इसे शामिल किया गया जिसे रवीन्द्रजैन ने संगीतबद्ध किया था।

किन्तु इस कालजयी रचना का श्रेय मुख्य रूप से गोस्वामी तुलसीदास जी को ही जाता है जिन्होने रामचरितमानस की रचना की और ऐसे विलक्षण दोहों एवं चौपाइयों की रचना की। उन्होने भक्ति-भाव से विनयपूर्वक भगवान श्रीराम से जो निवेदन किया, वो आज घर-घर में गाया जाता है। करोड़ों लोग घरों और मंदिरों में रोज श्रद्धा भाव से ‘मंगल भवन अमंगल हारी’ जैसी चौपाइयों का उच्चारण करते हैं।

वैष्णव समाज में भक्तों के बीच रामचरितमानस के दोहों और चौपाइयों तथा श्लोकों की वैदिक मंत्रों के समान ही मान्यता है। भक्त लोग बड़े ही मन से इनका श्रवण-कीर्तन किया करते हैं। पिछले चार सौ वर्षों से भी अधिक समय से ‘मंगल भवन अमंगल हारी’ जैसी चौपाइयाँ और दोहे भारतीय जनमानस की रेरना बने हुए हैं।

मंगल भवन अमंगल हारी । द्रवउ सो दसरथ अजिर बिहारी ॥

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