सोमवार व्रत कथा

सोमवार व्रत कथा को शिव मनसा व्रत कथा के नाम से भी जाना जाता है। इस व्रत का उपदेश सबसे पहले श्री सूतजी ने  शौनक आदि ऋषियों को किया था। यह व्रत भगवान शिव की कृपा प्राप्त करने के लिए सोमवार के दिन किया जाता है।

सोमवार व्रत कथा

हिन्दू धर्म के अनुसार सोमवार का दिन भगवान शिव-शंकर को समर्पित माना जाता है। वर्ष के बारह महीनों में श्रावण का मास भगवान शिव को अत्यंत प्रिय है। इसलिए सोमवार व्रत जब श्रावण (या सावन) महीने में किया  जाता है तो उसका महत्व और बढ़ जाता है। श्रावण मास की शुक्ल चतुर्थी से शुरू किया जाने वाला सोमवार व्रत  कार्तिक मास की शुक्ल चतुर्थी को समाप्त होता है।

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार सोमवार व्रत का आरंभ माता पार्वती ने स्वयं किया था।

सोमवार व्रत कथा क्या है?

सोमवार व्रत के दिन सुनी जाने वाली कथा सोमवार व्रत कथा कहलाती है। यह कथा व्रत करने वाले मनुष्यों को सपरिवार सुननी चाहिए। इस दिन यथाविधि व्रत रखने और सोमवार व्रत कथा का पाठ करने वाले भक्तों की सभी मनोकामनाएँ पूरी होती हैं।

सोमवार व्रत कथा का उपदेश श्री सूतजी ने शौनक आदि ऋषियों को किया था। इस कथा में विदर्भ देश की अमरावती नगरी की एक घटना और उससे संबन्धित कथा का विवरण मिलता है।

इस कथा के अतिरिक्त सोमवार व्रत के दौरान एक साहूकार की कथा का भी श्रवण किया जाता है। दोनों कथाएँ भक्त जनों की सुविधा के लिए इस लेख में नीचे दी गईं हैं। किन्तु सोमवार व्रत कथा जानने से पहले आइए इस व्रत की विधि से परिचित हो जाते हैं।

सोमवार व्रत कथा विधि

सोमवार का व्रत करने वाले मनुष्यों को यह व्रत आजीवन, अथवा चौदह वर्ष, या आठ वर्ष, या पाँच वर्ष, या सिर्फ लगातार सोलह सोमवार तक श्रद्धापूर्वक विधि से करना चाहिए।

सोमवार व्रत को धारण करने के लिए श्रावण, चैत्र, वैशाख, कार्तिक या मार्गशीर्ष महीनों के प्रथम सोमवार का दिन शुभ माना जाता है। किन्तु श्रावण महिना भगवान शिव को अत्यंत प्रिय है। इसलिए अधिकांश भक्तजन सोमवार का व्रत श्रावण के प्रथम सोमवार से ही आरंभ करना पसंद करते हैं।

व्रत करने से पहले इससे जुड़ी विधि का पालन भी अवश्य समझ लेना चाहिए। सोमवार व्रत कथा विधि क्या है और उसका पालन कैसे करना चाहिए यहाँ दिया गया है।

सोमवार व्रत कथा विधि:

  • सोमवार के व्रत से एक दिन पूर्व पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करें और केवल शुद्ध शाकाहारी भोजन करें। मन को शांत कर के शिव में ध्यान लगाएँ।
  • सोमवार के दिन प्रातः ब्रह्मवेला में उठकर स्नान आदि नित्य क्रिया से होकर हाथ में जल लेकर सोमवार व्रत करने के लिए संकल्प लेना चाहिए। बिना संकल्प के व्रत का पूरा लाभ नहीं मिलता है।
  • संकल्प में सर्वअभीष्ट सिद्धि के लिए सोलह (या अधिक) सोमवार व्रत के आचरण के निमित्त श्री सांबशिव पूजन का संकल्प लेना चाहिए।
  • व्रत के दिन शिव पार्वती की मूर्ति बना कर विधि पूर्वक षोडशोपचार पूजा करें और ॐ नमः शिवाय इस मंत्र का जाप करना चाहिए। कीर्तन और भजन भी करना चाहिए।
  • शिवलिंग पर कभी भी रोली या सिंदूर का तिलक नहीं लगाना चाहिए। दूध-दहि, गंगाजल, शहद, आदि से शिवलिंग पर अभिषेक करना चाहिए।
  • दिन भर व्रत रहें और संध्या काल में गौरी शंकर की पूजा करने के पश्चात उनका विसर्जन करें और प्रसाद ग्रहण करें।

विधि विधान से सोमवार व्रत का सोलह सोमवार व्रत करने के पश्चात सत्रहवें सोमवार के दिन इस व्रत का उद्यापन करना चाहिए।

उद्यापन के दिन किसी ब्राह्मण को बुलाकर यथाविधि पूजन कराना चाहिए और यथाशक्ति ब्राह्मण को दान-दक्षिणा देकर विदा करना चाहिए। पूजन, हवन, अभिषेक एवं कथा करने के बाद ही उद्यापन की प्रक्रिया पूर्ण मानी जाती है।

सोमवार व्रत कथा आरती

जै शिव ओंकारा ॐ हरशिव ओंकारा।                                                                                                     

 ब्रह्मा विष्णु सदाशिव अर्धांगी धारा ।। जय0 ।।

एकानन चतुरानन पञ्चानन राजे।                                                                                                         

 हंसासन गरूड़ासन वृषवाहन साजे ।। जय0 ।।

दो भुज चार चतुर्भुज दसभुज अति सोहे।                                                                                                   

त्रिगुण रूप निरखते त्रिभुवन जन मोहें।। जय0 ।।

अक्षमाला वनमाला मुण्डमाला धारी।                                                                                                      

चन्दन मृगमद सोहे भाले शशि धारी ।। जय0 ।।

श्वेताम्बर पीताम्बर बाघंबर अंगे।                                                                                                                

सनकादिक प्रभुतादिक भूतादिक संगे ।। जय0 ।।

कर मध्य कमंडल चक्र त्रिशूल धर्ता।                                                                                              

जगकरता जगभरता जगसंहार करता ।। जय0 ।।

ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका।                                                                                                      

प्राणवाक्षर में शोभित ये तीनों एका। जय0 ।।

त्रिगुण स्वामी की आरती जो कोई नर गावै।                                                                                               

क़हत शिवानंद स्वामी सुख संपत्ति पावै।। जय0 ।।

उपर्युक्त सोमवार व्रत कथा आरती को घर के सभी सदस्यों को एक साथ मिलकर करना चाहिए।

सावन सोमवार व्रत कथा

सावन सोमवार व्रत कथा या सोमवार व्रत कथा एक ही हैं। कथा कुछ इस प्रकार है।

एक समय श्री सूतजी ने शौनक आदि ऋषियों से कहा कि विदर्भ देश में अमरावती नामक बहुत सुंदर नगर है। इस नगरी में भगवान शिव का अत्यंत विशाल और सुंदर मंदिर स्थित है। उस स्थान में एक बार भगवान शिव और माता पार्वती घूमते हुए पधारे और वहाँ की सुंदरता देखकर प्रसन्न हुए।

माता पार्वती जी ने भगवान शिव से उस स्थान में चौपड़ पासा खेलने की इच्छा व्यक्त की। खेल आरंभ हुआ और माता पार्वती पहली बाजी जीत गईं। किन्तु भगवान शिव ने कहा कि यह बाजी तो मैं जीता हूँ। तत्पश्चात दोबारा चौपड़ पासा का खेल आरंभ हुआ और दोबारा माँ पार्वती जीत गईं।

इस बार माता पार्वती ने उस सुंदर शिवालय के गुरव नाम के पुजारी को बुलाकर पूछा कि इस बार बाजी किसने जीती है। सही-सही सत्य कहो। इस प्रकार पूछने पर गुरव पुजारी बोला बाजी तो भगवान शिवजी ने ही जीती है।

ऐसी बात सुनकर देवी उमा ने क्रुद्ध होकर गुरव पुजारी को श्राप दे दिया कि तेरे सारे शरीर में कोढ़ हो जाएगा। गुरव को श्राप देने के बाद शिव-पार्वती कैलाश लौट गए। वहीं दूसरी तरफ गुरव को तुरंत ही पूरे शरीर में कोढ़ रोग हो गया।

गुरव अपनी दुर्दशा देखकर चिंतित हो रहा था कि तभी स्वर्ग से एक अप्सरा पूजा की थाली लेकर भगवान शंकर की पुजा करने के लिए उसी शिवालय में आई। मंदिर के पुजारी गुरव को कोढ़ से व्याकुल देखकर अप्सरा ने इसका कारण पूछा। पुजारी गुरव ने अप्सरा से कहा कि उसे भगवती उमा ने श्राप दिया है जिसके कारण उसकी ये हालत हुई है।

गुरव ने अत्यंत विनम्र भाव से उस अप्सरा से इस कुष्ट रोग से निवारण का उपाय पूछा। तब उस अप्सरा ने गुरव से कहा कि चिंता मत करो। तुम श्रद्धाभाव से विधिपूर्वक सोमवार व्रत करो। सोमवार व्रत के प्रभाव से तुम पुनः ठीक होकर अपने स्वरूप को प्राप्त हो जाओगे। इसे सोलह सोमवार मानसा व्रत के रूप में भी किया जाता है।

तत्पश्चात उस सुंदरी ने गुरव को इस व्रत का पूरा विधि विधान बतला दिया। ऐसा कहकर वह अप्सरा चली गई। गुरव ने शुद्ध अन्तःकरण और भक्ति भाव से सोमवार व्रत को धारण किया। व्रत की पूर्णता होने पर गुरव पुजारी का कोढ़ अपने आप ही ठीक हो गया और उसका शरीर पहले की भांति निर्मल और स्वस्थ्य हो गया।

इस घटना के कुछ दिन बाद शिव-पार्वती फिर एक बार विहार करते-करते उसी अमरावती नगरी में शिवालय में आए। माता पार्वती को गुरव पुजारी को दिया हुआ श्राप स्मरण हो आया। किन्तु गुरव को निरोग और स्वस्थ्य देखने पर देवी पार्वती को बहुत आश्चर्य हुआ और उन्होने गुरव से पूछा “हे गुरव! तेरा कुष्ठ किस विधि या उपाय से ठीक हो गया?”

देवी पार्वती के पूछने पर पुजारी गुरव ने बताया कि मैंने भगवान शंकर का ध्यान लगाकर सोलह सोमवार व्रत का पालन किया है। उस व्रत के प्रभाव से मेरा कुष्ठ रोग ठीक हो गया है और मैं दोबारा स्वस्थ्य हुआ। गुरव के मुंह से सोमवार व्रत की महिमा का गुणगान सुनकर माता पार्वती ने भी इस व्रत को करने का निश्चय किया।

शिव पुत्र कार्तिकेय माता पार्वती से रुष्ट होकर उनसे दूर चला गया था। भगवती पार्वती ने भी इस सोमवार व्रत का पालन किया जिसके प्रभाव से कार्तिक पुनः अपनी माता पार्वती के पास लौट आए। बाद में देवी पार्वती ने अपने पुत्र कार्तिक को भी सोमवार व्रत का उपदेश किया था।

देवी पार्वती से उपदेश प्राप्तकर शिवपुत्र कार्तिकेय ने भी अपने ब्राह्मण मित्र से पुनः मिलने के लिए सोमवार व्रत को धारण किया था।  

सोलह सोमवार व्रत कथा

प्राचीन काल में किसी नगर में एक धनवान साहूकार रहता था। धन-धान्य और सुख ऐश्वर्य की उस साहूकार को कोई कमी नहीं थी किन्तु उसके कोई पुत्र नहीं था। पुत्र प्राप्ति के लिए वह साहूकार प्रति सोमवार व्रत करता और सिव पोज़ा विधि विधान से सम्पन्न करता था।

साहूकार का भक्तिभाव देखकर देवी पार्वती ने शंकर भगवान से उसकी मनोकामना पूर्ण करने के लिए प्रार्थना की। भगवान शंकर ने देवी उमा की इच्छा देखकर उस साहूकार को पुत्र का वरदान दे दिया।

किन्तु शिव शंकर ने उस बालक की आयु केवल 12 वर्ष ही बताई। उसके बाद उस बालक की मृत्यु निश्चित कर दी। शिव-पार्वती का यह संवाद साहूकार को पता चला तो वह विचलित नहीं हुआ और पहले की भांति ही सोमवार व्रत में लगा रहा।

कुछ समय बाद ही साहूकार के घर पुत्र का जन्म हुआ और चारों ओर प्रसन्नता फैल गई। किन्तु साहूकार को ज्ञात था कि इस बालक की आयु केवल 12 वर्ष ही है। जब उस बालक की आयु 11 वर्ष की हो गयी तो साहूकार ने उस बालक को उसके मामा के साथ शिक्षा के लिए काशी भेज दिया।

काशी जाते समय रास्ते में एक नगर पड़ा जहां ये विश्राम करने लगे। उस नगर में वहाँ के राजा की कन्या के विवाह की चर्चा थी। किन्तु जिस राजा के पुत्र से उस कन्या का विवाह तय था वह राजकुमार एक आँख से काना था। इस कारण लड़के का पिता चिंतित था।

तभी राजा ने एक चाल सोची कि क्यों ना अपने पुत्र के बदले मैं इस साहूकार के पुत्र को राजकुमार बनाकर राजकुमारी से विवाह करा दूँ और विवाह के पश्चात इस साहूकार के पुत्र को धन देकर विदा कर दूंगा। इस प्रकार बाद में राजकुमारी को अपने पुत्र समेत अपने देश ले जाऊंगा।

साहूकार के पुत्र और उसके मामा ने राजा की मदद करना स्वीकार कर लिया और साहूकार का पुत्र दूल्हे के वेश में विवाह मंडप पहुँच गया। किन्तु विवाह होने के पश्चात साहूकार के पुत्र को लगा कि इस प्रकार इस कन्या के साथ धोखा होगा। इसलिए इसे पूरी बात बताना आवश्यक है।

साहूकार के पुत्र ने अवसर पाकर राजकुमारी की चुन्नी के पल्लू पर लिख दिया की तुम्हारा विवाह तो मेरे साथ हुआ है और जिस राजकुमार के साथ तुम्हें बिदाइ कर के भेंजेंगे वह एक आँख से काना है। मैं तो काशी अध्ययन के लिए जा रहा हूँ।

विवाह की प्रक्रिया पूर्ण होने के बाद दुल्हन ने अपने पल्लू पर लिखी हुई बात पढ़ ली और काणे राजकुमार के साथ जाने से माना कर दिया। बारात खाली हाथ लौट गई। कन्या ने बताया कि मेरा पति तो काशी पढ़ने गया है।

उधर साहूकार का पुत्र और उसका मामा काशी पहुँच गए। काशी में लड़के ने अध्ययन आरंभ किया। किन्तु शीघ्र ही उसकी आयु 12 वर्ष हो गई। जिस दिन उसके मामा ने यज्ञ करना तय किया था उसी दिन उस साहूकार पुत्र के प्राण निकल गए।

किन्तु साहूकार ने किसी को यह बात नहीं बताई और अपना यज्ञ पूरा किया। यज्ञ के पूरा होते ही उन्होने रोना चिल्लाना शुरू किया। संयोगवश शिव-पार्वती उधर से जा रहे थे और उनकी नजर उस बालक पर पड़ी। माता पार्वती को स्मरण हो आया कि यह तो उसी साहूकार का पुत्र है जिसे आपे वरदान में दिया था। माता पार्वती ने भगवान शिव से कहा कि इस बालक को जीवित कर दें अन्यथा इसके माता-पिता रो-रो कर अपने प्राण त्याग देंगे।

देवी पार्वती की प्रार्थना पर भगवान महेश्वर ने उस साहूकार पुत्र को पुनः जीवन दान दे दिया। तत्पश्चात दोनों मामा-भांजा अपने स्वदेश की ओर लौट चले।

रास्ते में वही नगर पड़ा जहां उस लड़के का विवाह हुआ था। उस नगर के राजा ने अपने दामाद को देखते ही पहचान लिया। राजा ने साहूकार के पुत्र को अपनी कन्या प्रदान की और ढेर सारा धन और दास-दसियों सहित उन्हे विदा किया।

जब वे अपने नगर के समीप पहुंचे तो मामा ने अपने भांजे से कहा कि पहले मैं जाकर घर में खबर कर लेता हूँ। जब मामा साहूकार के घर पहुंचा तो देखा कि साहूकार और उसकी पत्नी दोनों घर कि छत पर बैठे हैं। उन्होने  प्रण किया था कि यदि उनका लड़का जीवित घर नहीं आया तो वे उसी छत से कूदकर जान दे देंगे।

मामा ने साहूकार और उनकी स्त्री को पुत्र के सकुशल घर वापस आने और उसके विवाह का समाचार दिया तो वे अति प्रसन्न हुए। उन्होने अपनी बहू का स्वागत किया और प्रसन्नतापूर्वक जीवन व्यतीत करने लगे। 

भविष्य पुराण के अनुसार अन्य सभी व्रत मिलकर भी सोलह सोमवार के सोलहवें भाग के बराबर भी नहीं हैं।

सोमवार व्रत कब से शुरू करना चाहिए 2022-2023

सोमवार नामक यह सर्वोत्तम व्रत श्रावण, चैत्र, वैशाख, कार्तिक या मार्गशीर्ष महीनों के प्रथम सोमवार के दिन शुरू किया जाता है। ज़्यादातर लोग सावन महीने के पहले सोमवार से ही इस व्रत को शुरू करते हैं।

आने वाले वर्ष यानि 2023 में सावन सोमवार व्रत करने के लिए आप 10 जुलाई से शुरू कर सकते हैं। 2022 में सोमवार व्रत सावन के पहले सोमवार यानि 18 जुलाई 2022 से आरंभ हुआ था।

सावन सोमवार व्रत 2023-सोमवार, 10 जुलाई 2023, श्रावण प्रथम सोमवार।

सोमवार व्रत जीवन भर, अथवा चौदह, आठ या पाँच वर्ष तक प्रति सोमवार किया जा सकता है। यदि यह संभव ना हो तो केवल 16 सोमवार तक व्रत भी किया जा सकता है।

सोमवार का व्रत कैसे किया जाता है?

सोमवार का व्रत श्रावण मास की शुक्ल चतुर्थी से शुरू किया जाता है और कार्तिक मास की शुक्ल चतुर्थी को समाप्त होता है। इस अवधि में पड़ने वाले सभी सोमवारों को भक्तजन व्रत रहकर भगवान शिव-शंकर की कृपा प्राप्त करने के लिए यथाविधि पूजन करते हैं।

सोमवार का व्रत प्रति सोमवार, सोलह सोमवार या सौम्य प्रदोष इन तीन रूपो में किया जाता है। किन्तु तीनों व्रत एक ही विधि से सम्पन्न किए जाते हैं।

सोमवार के व्रत में दिन भर व्रत रहकर भगवान शिव की आराधना करनी चाहिए और शाम के समय प्रदोष काल में शिव पूजन के बाद सोमवार व्रत कथा का पाठ करना चाहिए। परिवार के सभी सदस्यों को इस व्रत कथा का श्रवण करना चाहिए।

सोमवार व्रत जब केवल सोलह सोमवार तक किया जाता है तो उसे सोलह सोमवार व्रत कहा जाता है।

सोमवार का व्रत करने से क्या लाभ होता है?

हिन्दू धर्म शास्त्र भविष्यपुराण और अन्य ग्रन्थों के अनुसार सोमवार व्रत करने से भगवान शिव प्रसन्न होते हैं और शिव-पार्वती की भक्ति प्राप्त होती है। आरोग्य एवं आयु की वृद्धि करने वाला सोमवार का व्रत अतुल धन-धान्य, पुत्र, पौत्र और यश की वृद्धि करने वाला है। इस व्रत को करने से भगवान शिव उमासहित शीघ्र ही प्रसन्न हो कर व्रत करने वाले का कल्याण करते हैं।

सोमवार व्रत के लाभ ये हैं-

  1. सोमवार का व्रत करने से सम्पूर्ण पापों का नाश हो जाता है और मनुष्य को शिव-लोक की प्राप्ति होती है।
  2. निर्धन की दरिद्रता दूर हो जाती है और विद्याहीन को ज्ञान की प्राप्ति होती है।
  3. जो कन्याएँ सोलह सोमवार का व्रत करती हैं उन्हे भगवान शंकर और माता पार्वती की कृपा से योग्य वर की प्राप्ति होती है।
  4. स्त्रियों द्वारा सोमवार व्रत करने से सभी प्रकार के कष्ट दूर होते हैं और परिवार में भाग्योदय होता है।
  5. सुख, धन-दौलत और संतान की प्राप्ति भी सोमवार व्रत करने से होती है।
  6. सूतजी के अनुसार सोमवार का व्रत करने वाले के जन्म-जन्मांतरों के समस्त पाप, दोष और रोग इत्यादि का निवारण हो जाता है।
  7. किसी मनोकामना के लिए किया गया सोमवार व्रत व्रत मनुष्य की उस मनोकामना को अवश्य पूर्ण करता है।

सोमवार व्रत के लाभ और महिमा तो सर्वथा वर्णन से परे हैं। यह व्रत ना सिर्फ संसार में बल्कि मृत्यु के बाद अन्य लोकों में भी सुख-शांति प्रदान करता है। इतना ही नहीं जो कोई भी सोमवार व्रत कथा को श्रद्धा-भक्ति पूर्वक सुनेगा या सुनाएगा उसपर श्री उमामहेश सदा प्रसन्न रहेंगे।

सोमवार के व्रत के दिन क्या खाना चाहिए

सोमवार का व्रत करने वाले व्यक्ति को दिन में केवल एक बार शाम के समय भोजन करना चाहिए। यह व्रत दिन के तीसरे पहर तक होता है। सोमवार व्रत में खाने पीने के नियम अन्य हिन्दू व्रतों की तरह ही मान्य होते हैं। किसी भी प्रकार के गरिष्ठ या मांसाहार भोजन का त्याग व्रत से एक दिन पहले ही कर देना चाहिए।

सोमवार के व्रत से एक दिन पूर्व शुद्ध एवं सात्विक भोजन ग्रहण कर के ही अगले दिन व्रत करना चाहिए। सोमवार व्रत में केवल पानी पीने का नियम है।

व्रत के दिन शाम में भगवान शिव और माता पार्वती की पुजा करने के पश्चात ही प्रसाद और भोजन ग्रहण करना चाहिए। शाम के समय भोजन में गाय के दूध से बनी खीर, फल या साबूदाने से बना व्यंजन उपयोग किया जाता है।

सोमवार व्रत या सोलह सोमवार नाम का शिवमहाव्रत श्रद्धा एवं भक्तिपूर्वक पवित्र भाव से करने से व्यक्ति के सम्पूर्ण पापों का नाश हो जाता है और अंत में ऐसा व्यक्ति परम पद को प्राप्त होता है।

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