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कैसे बोलना चाहिए !

सम्यक्‌ वचन को पालि भाषा में मूलतः सम्यक वाक् के रूप में जाना जाता है | सम्यक्‌ वाक्  का  तात्पर्य है की बात करने या बोलने का सही तरीका क्या है | जन्म के पश्चात हम सीखते है की स्वयं की अभिव्यक्ति कैसे कर सके | सम्यक वाक् इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि वचन भी हमारे कर्म का निर्धारण करता है | और प्रत्येक कर्म अपने साथ कर्म-फल भी लाता है | प्रश्न है की क्या जन्म से अब तक जो हम बोलते आये है वह सम्यक अर्थात ठीक नहीं है | प्रत्येक जीव अपने जीवन- निर्वहन के लिए अभिव्यक्ति करता है | मनुष्य की प्रजाति अन्य से श्रेष्ठ है क्योंकि वह  अभिव्यक्ति के स्तर पर सर्वोच्च स्थिति में है |

कर्म फल के निर्धारण में मन , वचन और भौतिक कर्म तीनों की निर्णायक भूमिका होती है | सम्यक वाक् भी उतना ही महत्वपूर्ण है | भगवान बुद्ध ने निर्वाण की प्राप्ति के लिए जो अष्टांगिक मार्ग बताये उसमे सम्यक वाक् का महत्वपूर्ण स्थान है | साधक और योगी , जीवन में सम्यक वाक् का कठोर रूप से पालन करते है | सामान्य जनों से भी अपेक्षा होती है की सम्यक वाक् का पालन करे ताकि दुःखों से मुक्ति संभव हो सके | सम्यक वाक् या सम्यक वचन के अंतर्गत चार महत्वपूर्ण तत्वों का पालन करना होता है :-

१. झूठ अथवा असत्य नहीं बोलना –मनुष्य को प्रयास करना चाहिए की जो सत्य और तथ्य है उसीको बोलना चाहिए न कि असत्य और झूठ को | मनुष्य सामान्यतः अहं , झूठा दिखावा , अपने को श्रेष्ठ दिखाने इत्यादि के लिए  बार-बार असत्य या झूठ बोलता है | मनुष्य को यदि कोई चीज नहीं पता है तो कहना चाहिए की ‘मुझे नहीं पता है ” और यदि पता है तो कहना चाहिए की ‘मुझे पता है ” न कि झूठ बोलना चाहिए |

2. विभेदकारी वचन से बचनामनुष्य को वैसे वचन से बचना चाहिए जो आपस में भेदभाव, वैमनष्य एवं मतभेद उत्पन्न करता हो | जबकि वैसे वचन का प्रयोग करना चाहिए जिससे आपस में सहमति , सामंजस्य एवं मतैक्य स्थापित हो |

3. अपमानजनक वचन से बचना –मनुष्य अहं के कारण एवं अन्य कारणों से दुसरो के लिए अपमानजनक भाषा का प्रयोग करता है | अपमान जनक एवं अश्लील शब्दों का प्रयोग करता रहता है | लेकिन अज्ञानता के कारण नहीं समझता की यही कर्म-फल अपना प्रभाव लेकर आयेंगे

4. निरर्थक बातों से बचना –मनुष्य अनावश्यक रूप से समय को नष्ट करता है जबकि समय अनमोल है | जीवन में समय -अवधि निश्चित है | जो मनुष्य समय का सम्मान करता है | समय भी उसका सम्मान करता है | निश्चित समय पश्चात किये किसी कार्य का कोई महत्त्व नहीं है | मनुष्य खाली समय को व्यर्थ , निरर्थक और बकवास की बातों में ही बर्बाद कर देता है | यदि अवकाश या खाली समय हो तो उसका जीवन के लक्ष्य , दूसरे की भलाई  या अन्य सही कार्य में किया जाना चाहिए |

जीवन में केवल बोलने का महत्त्व नहीं है बल्कि क्या , कब और किस भावना से -यह सर्वाधिक महत्वपूर्ण है | जीवन में सत्य और तथ्यपूर्ण ही बोलना -प्राथमिकता है  | बोलने का समय भी महत्वपूर्ण है | जीवन में कई बार नहीं बोलना , बोलने से ज्यादा प्रभावी  होता है | कब बोलना और कब नहीं बोलना है -यह पूर्णतः सम्यक विवेक पर निर्भर करता है | कोई मनुष्य अँधा या अपंग है -जो सत्य है | लेकिन विवेकी मनुष्य उसे अँधा नहीं बुलाता क्योकि उसे पीड़ा हो सकती है |  मनुष्य जितना ही अपने ‘स्व’ में स्थित या’ स्थितप्रज्ञ’ एवं विवेकी होगा , उसके एक- एक शब्द ईश्वर -तुल्य होंगे | माना जाता है कि इस स्थिति में शब्द , सीधे हृदय से निकलते है न कि बुद्धि से | मानव बुद्धि सीमित है जबकि हृदय असीमित जिसका सम्बन्ध कॉस्मिक इंटेलिजेंस से है | सम्यक वचन के अंतर्गत महत्वपूर्ण नियम का पालन किया जाना चाहिए -सत्य बोलना , सही समय पर बोलना , स्नेहपूर्ण वचन बोलना , कल्याणकारी वचन बोलना  और किसी के प्रति अच्छे विचार रखते हुए बोलना | ये कुछ छोटे उपाय है जिन्हे आम जन अपने जीवन में आसानी से पालन कर सकते है |

योगी एवं साधकों द्वारा थोड़े से उच्च स्तर पर सम्यक्‌ वाक् (सम्यक वचन) के लिए speech mindfulness का अभ्यास किया जाता है | परम्परागत रूप से यह सत्य है की बोलने से पहले सोचना चाहिए की क्या बोल रहे है तथा इसका क्या प्रभाव होगा | speech mindfulness एक अभ्यास है जिसके तहत बोलने के पहले और बोलते समय होश बनाये रखा जाता है | असम्यक वचन शरीर और मन में तनाव , अवसाद तथा हृदय में अंतर्विरोध उत्प्न्न करता है | तब तक या स्थिति रहती है दुःखों का अंत संभव नहीं है | speech mindfulness के सतत अभ्यास से एक स्थिति आती है जब जीवन का एक-एक शब्द हृदय से ही उत्प्न्न होता है |

courtesy: google images

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