संधि किसे कहते हैं? साथ ही संधि के कितने भेद होते है तथा प्रत्येक संधि को उदाहरण के साथ समझना संधि ज्ञान की कुंजी है | संधि की संकल्पना , हिंदी भाषा और साहित्य के परिप्रेक्ष्य में अत्यंत ही महत्वपूर्ण है |
संधि किसे कहते हैं?
जब दो वर्णों के मेल से विकार उत्पन्न होता है तो उसे संधि कहते हैं। संधि में दो शब्द मिलकर एक हो जाते हैं। इसमें पहले शब्द के अंतिम वर्ण एवं दूसरे शब्द के पहले वर्ण का मेल होता है। वर्णों की यह विकारजन्य मिलावट (परिवर्तन) ही संधि कहलाती है।
उदाहरण: राम + अयन = रामायण
बोलचाल में प्रायः जब दो शब्द या पद एक दूसरे के साथ बोले जाते हैं, तब उच्चारण की सुविधा के लिए पहले शब्द का अंतिम वर्ण एवं दूसरे शब्द का पहला अक्षर या वर्ण एक दूसरे से मिल जाते हैं। ऐसे में एक नया शब्द उत्पन्न होता है। संधि हुए शब्द से वर्णों को अलग-अलग पहचानकर पदों को अलग-अलग करना ‘संधि-विच्छेद’ कहा जाता है।
“संधि” संस्कृत भाषा का शब्द है और हिन्दी में प्रयोग होने वाली संधियाँ संस्कृत से ली गई हैं। चूंकि हिन्दी भाषा में बहुत से शब्द संस्कृत से आए हैं, इसलिए संधि के संस्कृत व्याकरण के नियम हिन्दी में भी मान्य हैं।
संधि के कितने भेद होते हैं?
वर्णों के आधार पर संधि के तीन भेद होते हैं-
- स्वर संधि
- व्यंजन संधि
- विसर्गसन्धि
नोट: संधि के ये भेद या वर्गीकरण संधि में आने वाले पहले वर्ण के आधार पर ही किए जाते हैं।
यहाँ स्पष्ट कर देना आवश्यक है कि हिन्दी भाषा में अपने उद्भव तथा आगत शब्दों पर संस्कृत संधि के नियम लागू नहीं होते। ऐसे शब्दों पर हिन्दी में विकसित हुए अपने संधि नियम ही लागू होते हैं। ऐसा ही एक नियम महाप्राणीकरण तथा अल्प्राणीकरण है।
इसके अतिरिक्त हिन्दी में संधि के कुछ परिवर्तन ऐसे भी हैं जिन पर संस्कृत संधि के नियम लागू नहीं होते। जैसे-पानी+घाट=पनघट , घोड़ा+सवार=घुड़सवार इत्यादि।
संस्कृत में संधि कितने प्रकार की होती है?
संस्कृत में भी संधि तीन प्रकार की होती है- (1) स्वर संधि, (2) व्यंजन-संधि एवं (3) विसर्ग-संधि हैं। हिन्दी भाषा में संधि के नियम संस्कृत भाषा से ही आए हैं।
1. स्वर संधि किसे कहते हैं?
जब दो स्वरों के मिलने से विकार उत्पन्न होता है तो उसे स्वरसंधि कहते हैं। अर्थात जब एक स्वर के बाद दूसरा स्वर आए तो उनमें परिवर्तन से उत्पन्न होने वाला शब्द स्वरसंधि बनाता है।
जैसे- सूर्य+अस्त=सूर्यास्त
स्वर संधि के पाँच भेद होते हैं यथा-
- दीर्घ
- गुण
- वृद्धि
- यण
- अयादि
1. दीर्घ संधि
जब दो सवर्ण स्वर मिलकर दीर्घ हो जाते हैं तो दीर्घ स्वरसंधि होती है। यदि ‘अ’, ‘आ’, ‘इ’, ‘ई’, ‘उ’, ‘ऊ’ एवं ‘ऋ’ के बाद वे ही हृस्व या दीर्घ स्वर आ जाएँ, तो दोनों को मिलाकर क्रमशः ‘आ’, ‘ई’, ‘ऊ’, और ‘ऋ’ हो जाते हैं।
जैसे दीर्घ संधि के निम्नलिखित उदाहरण देखिये-
अ+अ=आ
अन्न+अभाव=अन्नाभाव
स्व+अर्थी=स्वार्थी
धर्म+अर्थ=धर्मार्थ
देव+अर्चन=देवार्चन
वीर+अंगना=वीरांगना
अ+आ=आ
देव+आलय=देवालय
शिव+आलय=शिवालय
सत्य+आग्रह=सत्याग्रह
नव+आगत=नवागत
देव+आगमन=देवागमन
आ+अ=आ
विद्या+अर्थी=विद्यार्थी
सीमा+अंत=सीमांत
रेखा+अंश=रेखांश
आ+आ=आ
महा+आत्मा=महात्मा
विद्या+आलय=विद्यालय
महा+आशय=महाशय
इ+इ=ई
गिरि+इन्द्र=गिरीन्द्र
अति+इव+अतीव
रवि+इन्द्र=रवीन्द्र
इसी प्रकार अन्य सवर्ण स्वर मिलकर दीर्घ हो जाते हैं।
2. गुण संधि
यदि ‘अ’ और ‘आ’ के बाद ‘इ’ या ‘ई’, ‘उ’ या ‘ऊ’ और ऋ आए तो दोनों के मेल से क्रमशः ‘ए’, ‘औ’, और ‘अर्’ हो जाता है।
जैसे-
देव+इन्द्र=देवेन्द्र
देव+ईश=देवेश
परम+ईश्वर=परमेश्वर
वीर+उचित=वीरोचित
महा+उदय=महोदय
महा+ऋषि=महर्षि
गंगा+उर्मि=गंगोर्मि
3. वृद्धि संधि
यदि ‘अ’ या ‘आ’ के बाद ‘ए’ या ‘ऐ’ आए तो दोनों के बदले ‘ऐ’ तथा ‘ओ’ या ‘औ’ के आने पर दोनों के बदले ‘औ’ हो जाता है।
जैसे-
एक+एक=एकैक
सदा+एव=सदैव
महा+औषध=महौषध
महा+ऐश्वर्य=महैश्वर्य
4. यण संधि
संधि में जब ‘इ’, ‘ई’, ‘उ’, ‘ऊ’ और ‘ऋ’ के बाद कोई दूसरा स्वर आए तो इ और ई का यू, उ, ऊ का व् और ‘ऋ’ का ‘र्’ हो जाता है।
जैसे-
उपरि+उक्त=उपर्युक्त
यदि+अपि=यद्यपि
अति+आवश्यक=अत्यावश्यक
अनु+अय=अन्वय
वि+ऊह=व्यूह
5. अयादि संधि
संधि के दौरान जब ‘ए’, ‘ऐ’, ‘ओ’, ‘औ’, का मेल दूसरे स्वरों से हो जाए तो ‘ए’ का ‘अय्’, ‘ऐ’ का ‘आय्’, ‘ओ’ का ‘अव्’, और ‘औ’ का ‘आव’ बन जाता है।
जैसे-
ने+अन=नयन
शे+अन=शयन
पो+अन=पवन
पौ+अन=पावन
गै+अक=गायक
भौ+उक=भावुक
गो+ईश=गवीश
नौ+इक=नाविक
2. व्यंजन संधि किसे कहते हैं?
संधि में किसी व्यंजन से स्वर अथवा व्यंजन के मेल से उत्पन्न होने वाले विकार को ‘व्यंजन संधि’ कहा जाता है।
जैसे- वाक्+ईश=वागीश ( ‘क्’ व्यंजन से ‘ई’ स्वर की संधि)
व्यंजन संधि में व्यंजन एवं स्वर अथवा व्यंजन और व्यंजन की संधि से होने वाले विकार निम्नलिखित नियमों के अधीन हैं।
व्यंजन संधि के नियम
व्यंजन संधि नियम 1
यदि किसी वर्ग के पहले वर्ण जैसे क्, च्, ट्, त्, प् के बाद किसी वर्ग का तृतीय या चतुर्थ वर्ण आए, या य, र, ल, व, या फिर कोई स्वर आए तो वर्ग का पहला वर्ण अपने ही वर्ग के तीसरे वर्ण में बदल जाता है।
जैसे-
सत्+वाणी-सद्वाणी दिक्+गज=दिग्गज षट्+दर्शन=षड्दर्शन
व्यंजन संधि नियम 2
यदि क्, च्, ट्, त्, प् के बाद अनुनासिक वर्ण ‘न’ या ‘म’ आए तो क्, च्, ट्, त्, प् परिवर्तित होकर अपने वर्ग के पंचम वर्ण में बदल जाते हैं।
जैसे-
जगत्+नाथ=जगन्नाथ उत्+नति+उन्नति
व्यंजन संधि नियम 3
यदि संधि में म् के बाद कोई स्पर्श व्यंजन आए, तो ‘म्’ अनुस्वार में परिवर्तित हो जाता है एवं बादवाले वर्ण के वर्ग का पंचम वर्ण हो जाता है।
जैसे-
अहम्+कार=अहंकार सम्+योग=संयोग सम्+गम=संगम
व्यंजन संधि नियम 4
यदि संधि में त्, द् के आगे ‘ल’ आए तो वे ‘ल’ में बदल जाते हैं। ठीक इसी प्रकार संधि में यदि न् के बाद ‘ल’ आए तो ‘न्’ अनुनासिक सहित ‘ल’ में परिवर्तित हो जाता है।
जैसे-
उत्+लास=उल्लास महान्+लाभ=महाँल्लाभ
व्यंजन संधि नियम 5
यदि संधि करते समय वर्गों के अंतिम वर्णों के अतिरिक्त शेष वर्णों के बाद ‘ह’ आए, तो ‘ह’ परिवर्तित होकर पूर्ववर्ण के वर्ग का चतुर्थ वर्ण हो जाता है। संधि में ‘ह’ से पहले वाला वर्ण अपने वर्ग के तृतीय वर्ण में बदल जाता है।
जैसे-
तत्+हित=तद्धित उत्+हार=उद्धार उत्+हत=उद्धत
व्यंजन संधि नियम 6
संधि करते समय सकार और तवर्ग का शकार और चवर्ग के मेल से शकार और चवर्ग एवं षकार और टवर्ग के मेल में षकार और टवर्ग में परिवर्तन हो जाता है।
जैसे-
उत्+चारण=उच्चारण सत+जन=सज्जन दृष्+ता=दृष्टा उत्+डयन=उड्डयन
व्यंजन संधि नियम 7
किसी भी ह्रस्व स्वर के बाद ‘छ’ आने पर ‘छ’ के पहले ‘च्’ जुड़ जाता है। यही नियम दीर्घ स्वर ‘आ’ के बाद छ होने पर भी मान्य होता है।
जैसे-
स्व+छंद=स्वच्छंद परि+छेद=परिच्छेद उत्+हार=उद्धार
3. विसर्ग संधि किसे कहते हैं?
जब विसर्ग के साथ किसी स्वर या व्यंजन के मेल से विकार (परिवर्तन) उत्पन्न होता है, तो उसे ‘विसर्गसंधि कहते हैं। विसर्ग संधि में विसर्ग में ही विकार उत्पन्न होता है। जैसे-
मनः+योग=मनोयोग तपः+भूमि=तपोभूमि निः+आहार=निराहार निः+छल=निश्छ्ल
विसर्ग संधि के 7 प्रमुख नियम माने जाते हैं:
विसर्ग संधि नियम -1
यदि संधि में विसर्ग के बाद ‘च-छ’ हो तो विसर्ग परिवर्तित होकर ‘श्’, ‘ट-ठ’ हो तो ‘ष्’ और ‘त’, ‘थ’ हो तो स् हो जाता है। उदाहरण-
निः+चय=निश्चय निः+छल=निश्छल धनुः+टंकार=धनुष्टंकार निः+टार=निस्तार
विसर्ग संधि नियम -2
यदि विसर्ग से पहले इकार या उकार (‘इ’ या ‘उ’) आए और बाद में ‘क’, ‘ख’, ‘प’, ‘फ’ हो तो विसर्ग परिवर्तित होकर ‘ष’ हो जाता है। उदाहरण-
निः+पाप=निष्पाप निः+कपट=निष्कपट निः+फल=निष्फल दुः+कर=दुष्कर
विसर्ग संधि नियम -3
यदि विसर्ग से पहले ‘अ’ एवं ‘आ’ को छोड़कर कोई दूसरा स्वर आ जाए और विसर्ग के बाद कोई स्वर हो अथवा किसी वर्ग का तृतीय, चतुर्थ, या पंचम वर्ण हो या य, र, ल, व, ह आए, तो विसर्ग के स्थान पर ‘र्’ हो जाता है। उदाहरण-
निः+धन=निर्धन निः+उपाय=निरुपाय निः+जन=निर्जन बहिः+मुख=बहिर्मुख दुः+आत्मा=दुरात्मा दुः+गंध=दुर्गंध निः+गुण=निर्गुण निः+माल=निर्मल निः+जल=निर्जल
विसर्ग संधि नियम -4
संधि में जब विसर्ग से पहले ‘अ’ हो एवं बाद में क, ख, प, फ, में से कोई भी वर्ण आए, तो विसर्ग में कोई परिवर्तन नहीं होता है। विसर्ग ज्यों का त्यों बना रहता है। जैसे-
प्रातः+काल=प्रातःकाल अन्तः+करण=अन्तःकरण पयः+पान=पयःपान अन्तः+पुर=अन्तःपुर अधः+पतन=अधःपतन
नोट:- इस नियम में अपवाद है। नमः और पुरः में विसर्ग परिवर्तित होकर स् हो जाता है। जैसे-
नमः+कार=नमस्कार पुरः+कार=पुरस्कार
विसर्ग संधि नियम -5
यदि ‘इ’, ‘उ’ के बाद विसर्ग हो एवं विसर्ग के बाद ‘र’ हो, तो विसर्ग का लोप हो जाता है और ‘इ’, ‘उ’ का ‘ई’-‘ऊ’ हो जाता है।
उदाहरण-
निः+रोग=निरोग निः+रस=नीरस निः+रव=नीरव दुः+राज=दुराज
विसर्ग संधि नियम -6
यदि विसर्ग से पहले ‘अ’ हो और बाद में ‘अ’ अथवा किसी वर्ग का तृतीय, चतुर्थ या पंचम वर्ण हो अथवा ‘य’, ‘र’, ‘ल’, ‘व’, या ह हो, तो विसर्ग का ‘ओ’ हो जाता है।
जैसे-
तपः+बल=तपोबल मनः+रथ=मनोरथ सरः+ज=सरोज मनः+हर=मनोहर तेजः+मय=तेजोमय अधः+गति=अधोगति
विसर्ग संधि नियम -7
यदि विसर्ग के पहले और बाद में ‘अ’ आए तो पहला ‘अ’ और विसर्ग मिलकर ‘ओ’ हो जाते हैं और बाद वाले ‘अ’ का लोप होकर उसकी जगह लुपताकार (s) हो जाता है।
जैसे-
प्रथमः+अध्यायः=प्रथमोध्याय (प्रथमोSध्यायः)
हिन्दी की कुछ विशेष संधियाँ
1.‘आ’ का ‘अ’ हो जाना
आम+चूर=अमचूर
हाथ+कड़ी=हथकड़ी
लड़का+पन=लड़कपन
राज+वाड़ा=रजवाड़ा
2. ‘ह’ का ‘भ’ में परिवर्तन
यदि ‘जब’, ‘कब’, ‘तब’ जैसे शब्दों के बाद ‘ही’ आने पर ‘ही’ का ‘भी’ में परिवर्तन हो जाता है।
जब+ही=जभी
तब+ही=तभी
सब+ही=सभी
3. ‘ह’ का लोप हो जाना
वह+ही=वही
यह+ही=यही
उस+ही=उसी
4. कभी-कभी ‘इ’ और ‘ई’ परिवर्तित होकर ‘इय्’ बन जाते हैं।
देवी+आँ=देवियाँ
शक्ति+ आँ=शक्तियाँ
दीर्घ संधि किसे कहते हैं?
दीर्घ संधि की परिभाषा: दीर्घ संधि में दो हृस्व स्वर मिलकर दीर्घ हो जाते हैं। किन्तु इस संधि में दोनों मेल करने वाले स्वर एक ही होने चाहिए। यदि ‘आ’, ‘आ’, ‘इ’, ‘ई’, ‘उ’, ‘ऊ’ और ‘ऋ’ के बाद वे ही स्वर हृस्व या दीर्घ आए तो दोनों को मिलाकर ‘आ’, ‘ई’, ‘ऊ’ और ‘ऋ’ हो जाते हैं।
जैसे-
धर्म+अर्थ=धर्मार्थ (अ+अ=आ)
देव+आलय=देवालय (अ+आ=आ)
परीक्षा+अर्थी=परीक्षार्थी (आ+अ=आ)
रवि+इन्द्र=रवीन्द्र (इ+इ=ई)
भानु+उदय=भानूदय (उ+उ=ऊ)
पितृ+ऋण=पितृण (ऋ+ऋ=ऋ)
गुण संधि किसे कहते हैं?
गुण संधि की परिभाषा: यदि ‘अ’ और ‘आ’ के बाद ‘इ’ या ‘ई’, ‘उ’ या ‘ऊ’ और ऋ आए तो दोनों के मेल से क्रमशः ‘ए’, ‘औ’, और ‘अर्’ हो जाता है।
जैसे-
देव+इन्द्र=देवेन्द्र
देव+ईश=देवेश
परम+ईश्वर=परमेश्वर
वीर+उचित=वीरोचित
महा+उदय=महोदय
महा+ऋषि=महर्षि
गंगा+उर्मि=गंगोर्मि
संधि हिन्दी एवं संस्कृत व्याकरण का एक अभिन्न अंग है जिसकी सहायता से हम शब्दों के निर्माण की प्रक्रिया समझ सकते हैं। संधि का विपरीत संधि-विच्छेद होता है जिसमें शब्दों से वर्णों (या/एवं शब्दों) को अलग-अलग करके पदों की पहचान की जाती है। अब आप संधि किसे कहते हैं जान गए होंगे। संधि क्या है और इसके भेद कौन-कौन से हैं यह जानकारी भी आपने प्राप्त की है।
संधि के लिए कम से कम दो वर्णों का होना आवश्यक है।