आदित्य हृदय स्तोत्र भगवान सूर्य देव की स्तुति है जो रामायण काल में राम रावण युद्ध के समय अगस्त्य ऋषि ने श्री राम को बताई थी। इसके जप से निश्चित रूप से शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है।
भारतीय परंपरा में सूर्य को “भुवनेश्वर” अर्थात भुवनों का स्वामी कहा जाता है जो सभी प्राणियों को ऊर्जा प्रदान करते हैं। इसलिए वैदिक काल से ही विश्व-प्रसिद्ध “गायत्री मंत्र” आदि के द्वारा सूर्य की आराधना होती आई है।
चूंकि “आदित्य हृदय स्तोत्र” स्वयं मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम ने धारण किया था इसलिए इसका महत्व और अधिक बढ़ जाता है। शत्रुओं पर विजय प्रदान करने वाला यह स्तोत्र अपने आप में विशेष है।
आइए आदित्य हृदय स्तोत्र के संस्कृत मूल पाठ, हिन्दी अर्थ एवं उसके जप, रामायण में उसके स्थान और जप विधि के बारे में जानते हैं।
आदित्य हृदय स्तोत्र
मंत्रों और स्तुतियों से भगवान सूर्य देव की आराधना की परंपरा वैदिक काल से चली आ रही है। ऐसी ही एक विख्यात सूर्य स्तुति है “आदित्य हृदय स्तोत्र” जो महर्षि अगस्त्य द्वारा मनुष्यों के कल्याण के लिए बताई गई है। भगवान सूर्य अदिति और कश्यप ऋषि के पुत्र हैं इसलिए उन्हे “आदित्य” भी कहा जाता है।
आदित्य हृदय स्तोत्र 31 श्लोकों की स्तुति है जो सूर्य देवता को समर्पित है। रामायण के भाष्यकारों के अनुसार इस स्तोत्र का नाम आदित्य हृदय इसलिए है क्योंकि इसके उच्चारण से भगवान आदित्य का ‘हृदय’ प्रसन्न होता है। आदित्य हृदय स्तोत्र की रचना अनुष्टुप छंद में की गई है और इसके ऋषि‘अगस्त्य’ हैं। भगवान आदित्य को समर्पित यह पूरा स्तोत्र संस्कृत भाषा में है।
आदित्य हृदय स्तोत्र Lyrics
आदित्य हृदय स्तोत्र संस्कृत में लिखी गई सूर्य देव की स्तुति है। इसकी लिरिक्स संस्कृत और हिन्दी में नीचे दी गई है।
आदित्य हृदय स्तोत्र हिंदी मै
ततो युद्धपरिश्रान्तं समरे चिन्तया स्थितम् । रावणं चाग्रतो दृष्टवा युद्धाय समुपस्थितम् ॥1॥ दैवतैश्च समागम्य द्रष्टुमभ्यागतो रणम् । उपगम्याब्रवीद् राममगरत्यो भगवांस्तदा ॥2॥
Hindi translation:
इधर श्री रामचन्द्रजी युद्ध से थककर चिन्ता करते हुए रणभूमि में खड़े थे । इतने में रावण भी युद्ध के लिए उनके सामने उपस्थित हो गया । यह देख भगवान अगस्त्य मुनि, जो देवताओं के साथ युद्ध देखने के लिए आये थे, श्रीराम के पास जाकर बोले ॥ 1-2
राम राम महाबाहो श्रृणु गुह्यं सनातनम् । येन सर्वानरीन् वत्स समरे विजयिष्यसे ॥3॥
Hindi translation:
सबके हृदय में रमण करने वाले महाबाहो राम ! यह सनातन गोपनीय स्तोत्र सुनो । वत्स ! इसके जप से तुम युद्ध में अपने समस्त शत्रुओं पर विजय पा जाओगे ॥
आदित्यहृदयं पुण्यं सर्वशत्रुविनाशनम् । जयावहं जपं नित्यमक्षयं परमं शिवम् ॥4॥ सर्वमंगलमांगल्यं सर्वपापप्रणाशनम् । चिन्ताशोकप्रशमनमायुर्वधैनमुत्तमम् ॥5॥
Hindi translation:
इस गोपनीय स्तोत्र का नाम है आदित्यहृदय । यह परम पवित्र और सम्पूर्ण शत्रुओं का नाश करने वाला है । इसके जप से सदा विजय की प्राप्ति होती है । यह नित्य अक्ष्य और परम कल्याणमय स्तोत्र है । सम्पूर्ण मंगलों का भी मंगल है । इससे सब पापों का नाश हो जाता है। यह चिंता और शोक को मिटाने तथा आयु को बढ़ानेवाला उत्तम साधन है। 4-5
रश्मिमन्तं समुद्यन्तं देवासुरनमस्कृतम् । पूजयस्व विवस्वन्तं भास्करं भुवनेश्वरम् ॥6॥
Hindi translation:
भगवान् सूर्य अपनी अनंत किरणों से रश्मिमान् हैं। ये नित्य उदय होने वाले देवता और असुरों से नमस्कृत, विवस्वान् नाम से प्रसिद्ध, प्रभा का विस्तार करनेवाले भास्कर और संसार के स्वामी (भुवनेश्वर) हैं। तुम इनका पूजन करो।
सर्वदेवतामको ह्येष तेजस्वी रश्मिभावनः । एष देवासुरगणाँल्लोकान् पाति गभस्तिभिः ॥7॥
Hindi translation:
संपूर्ण देवता इन्हीं के स्वरूप है। ये तेज की राशि तथा अपनी किरणों से जगत को सत्ता एवं स्फूर्ति प्रदान करनेवाले हैं। ये ही अपनी रश्मियों का प्रसार करके देवता और असुरों सहित संपूर्ण लोगों का पालन करते हैं।
एष ब्रह्मा च विष्णुश्च शिवः स्कन्दः प्रजापतिः । महेन्द्रो धनदः कालो यमः सोमो ह्यपां पतिः ॥8॥ पितरो वसवः साध्या अश्विनौ मरुतो मनुः । वायुर्वन्हिः प्रजाः प्राण ऋतुकर्ता प्रभाकरः ॥9॥
Hindi translation:
ये ही ब्रह्मा, विष्णु, शिव, स्कन्द, प्रजापति, इंद्र, कुबेर, काल, यम, चन्द्रमा, वरुण, पितर, वसु, साध्य, अश्विनीकुमार, मरुद्गण, मनु, वायु, अग्नि, प्रजा, प्राण, ऋतुओं को प्रकट करनेवाले तथा प्रभा के पुंज हैं।
आदित्यः सविता सूर्यः खगः पूषा गर्भास्तिमान् । सुवर्णसदृशो भानुहिरण्यरेता दिवाकरः ॥10॥ हरिदश्वः सहस्रार्चिः सप्तसप्तिर्मरीचिमान् । तिमिरोन्मथनः शम्भूस्त्ष्टा मार्तण्डकोंऽशुमान् ॥11॥ हिरण्यगर्भः शिशिरस्तपनोऽहरकरो रविः । अग्निगर्भोऽदितेः पुत्रः शंखः शिशिरनाशनः ॥12॥ व्योमनाथस्तमोभेदी ऋम्यजुःसामपारगः । घनवृष्टिरपां मित्रो विन्ध्यवीथीप्लवंगमः ॥13॥ आतपी मण्डली मृत्युः पिंगलः सर्वतापनः । कविर्विश्वो महातेजा रक्तः सर्वभवोदभवः ॥14॥ नक्षत्रग्रहताराणामधिपो विश्वभावनः । तेजसामपि तेजस्वी द्वादशात्मन् नमोऽस्तु ते ॥15॥
Hindi translation:
इनके के नाम – आदित्य (अदितीपुत्र), सविता (जगत को उत्पन्न करनेवाले), सूर्य, (सर्वव्यापक), खग (आकाश में विचरनेवाले), पृषा (पोषण करनेवाले), गभस्तिमान (प्रकाशमान), सुवर्णसादृश, भानु (प्रकाशक), हिरण्यरेता (ब्रह्मांड की उत्पत्ति के बीज), दिवाकर (रात्रि का अंधकार दूर करके दिन का प्रकाश फैलानेवाले), हरिदश्व (हरे रंग के घोड़े वाले), सहस्रार्चि (हजारों किरणों से सुशोभित), सात घोड़ेवाले, मरीचिमान (किरणों से सुशोभित), अंधकार का नाश करनेवाले, शम्भू (कल्याण के उद्गमस्थान), त्वष्टा (भक्तों का दुःख दूर करनेवाले), मार्तन्डक (ब्रह्माण्ड को जीवन प्रदान करनेवाले), अंशुमान (किरण धारण करने वाले), हिरण्यगर्भ (ब्रह्मा), ठंडी का नाश करनेवाले, अहस्कर (दिनकर), रवि (सब के स्तुतिपात्र), अग्नि को गर्भ में धारण करनेवाले, आकाश स्वामी, अंधकार को नष्ट करनेवाले, ऋग्वेद, यजुर्वेद तथा सामवेद के पारगामी, घनी वृष्टि देनेवाले, जालों को उत्पन्न करनेवाले, किरणों को धारण करनेवाले, पिंगल (भूरे रंग वाले), सबको ताप देनेवाले, सर्वस्वरूप, कवि, महातेजस्वी, लाल रंगवाले, तेजस्वियों में भी अधिक तेजस्वी, तथा जो बारे स्वरूपों में अभिव्यक्त है – आपको नमस्कार है।
नमः पूर्वाय गिरये पश्चिमायाद्रये नमः । ज्योतिर्गणानां पतये दिनाधिपतये नमः ॥16॥
Hindi translation:
पूर्वागीरी (उदयाचल) तथा पश्चिमगिरि (अस्ताचल) तक आपको नमस्कार है। ग्रहों और तारों के स्वामी तथा दिन के अधिपति आपको प्रणाम है।
जयाय जयभद्राय हर्यश्वाय नमो नमः । नमो नमः सहस्रांशो आदित्याय नमो नमः ॥17॥
Hindi translation:
आप जयस्वरूप तथा विजय और कल्याण के दाता हैं। आपके रथ में हरे घोड़े जुते हैं। आपको बारम्बार नमस्कार है। सहस्रों किरणों से सुशोभित भगवान् सूर्या आपको बारम्बार नमस्कार है। अदिति के पुत्र आपको बारम्बार नमस्कार है।
नम उग्राय वीराय सारंगाय नमो नमः । नमः पद्मप्रबोधाय प्रचण्डाय नमोऽस्तु ते ॥18॥
Hindi translation:
उग्र, वीर एवं सारंग (शीघ्रगामी) सूर्यदेव को मेरा नमस्कार है। कमलों को विकसित करनेवाले प्रचंड तेजधारी प्रचण्ड को भी मेरा प्रणाम है।
ब्रह्मेशानाच्युतेशाय सूरायदित्यवर्चसे । भास्वते सर्वभक्षाय रौद्राय वपुषे नमः ॥19॥
Hindi translation:
आप भगवान ब्रह्मा, शिव और विष्णु के भी स्वामी है। सूर आपकी संज्ञा है, यह सूर्यमंडल आपका ही तेज है, आप प्रकाश से परिपूर्ण हैं, सबको स्वाहा कर देनेवाली अग्नि आपका ही स्वरुप है, आप रौद्ररूप धारण करने वाले आपको मेरा नमस्कार है।
तमोघ्नाय हिमघ्नाय शत्रुघ्नायामितात्मने । कृतघ्नघ्नाय देवाय ज्योतिषां पतये नमः ॥20॥
Hindi translation:
“हे प्रभु, आप अज्ञान और अन्धकार के नाशक है, आप जड़ता एवं शीत के निवारक तथा शत्रु का नाश करनेवाले हैं। आपका स्वरुप अप्रमेय है। आप कृतघ्नों का नाश करनेवाले, संपूर्ण ज्योतियों के स्वामी और देवस्वरूप हैं, आपको मेरा प्रणाम है।“
तप्तचामीकराभाय हस्ये विश्वकर्मणे । नमस्तमोऽभिनिघ्नाय रुचये लोकसाक्षिणे ॥21॥
Hindi translation:
प्रभु आप प्रभा तपाये हुए सुवर्ण के समान है, आप हरि हैं, आप विश्वकर्मा हैं, तम के नाशक, प्रकाशस्वरूप एवं जगत के साक्षी हैं, आपको मेंरा प्रणाम है।
नाशयत्येष वै भूतं तमेव सृजति प्रभुः । पायत्येष तपत्येष वर्षत्येष गभस्तिभिः ॥22॥
Hindi translation:
ये भगवान् सूर्य ही संपूर्ण भूतों का संहार, सृष्टि और पालन करते हैं। ये अपनी किरणों से गर्मी पहुंचाते और वर्षा भी करते हैं ।
एष सुप्तेषु जागर्ति भूतेषु परिनिष्ठितः । एष चैवाग्निहोत्रं च फलं चैवाग्निहोत्रिणाम् ॥23 ॥
Hindi translation:
ये सब भूतों में अन्तर्यामी रूप से स्थित होकर उनके सो जाने पर भी जागते रहते हैं। ये ही अग्निहोत्र तथा अग्निहोत्री पुरुषों को मिलनेवाले फल हैं।
देवाश्च क्रतवश्चैव क्रतूनां फलमेव च । यानि कृत्यानि लोकेषु सर्वेषु परमप्रभुः ॥24॥
Hindi translation:
देवता, यज्ञ और यज्ञों के फल भी ये ही हैं। संपूर्ण लोगों में जितनी क्रियाएँ होती हैं, उन सब का फल देने मैं ये ही पूर्ण समर्थ हैं।
एनमापत्सु कृच्छ्रेषु कान्तारेषु भयेषु च । कीर्तयन् पुरुषः कश्चिन्नावसीदति राघव ॥25॥
Hindi translation:
हे राघव! विपत्ति में, कष्ट में, दुर्गम मार्ग में तथा और किसी भय के अवसर पर जो कोई पुरुष इन सूर्यदेव का कीर्तन करता है, उसे दुःख नहीं भोगना पड़ता।
पूजयस्वैनमेकाग्रो देवदेवं जगत्पतिम् । एतत् त्रिगुणितं जप्तवा युद्धेषु विजयिष्ति ॥26॥
Hindi translation:
इसलिये तुम एकाग्रचित्त होकर इन देवाधिदेव जगदीश्वर कि पूजा करो। इसका (आदित्य हृदय स्तोत्र का) तीन बार जप करने से तुम युद्ध में विजय पाओगे।
अस्मिन् क्षणे महाबाहो रावणं त्वं जहिष्यसि । एवमुक्त्वा ततोऽगस्त्यो जगाम स यथागतम् ॥27॥
Hindi translation:
“महाबाहो! तुम इसी समय रावण को यूद्ध में वध कर सकोगे।” यह कहकर अगस्त्य ऋषि वापस चले गए।
एतच्छ्रुत्वा महातेजा, नष्टशोकोऽभवत् तदा । धारयामास सुप्रीतो राघवः प्रयतात्मवान् ॥28॥ आदित्यं प्रेक्ष्य जप्त्वेदं परं हर्षमवाप्तवान् । त्रिराचम्य शुचिर्भूत्वा धनुरादाय वीर्यवान् ॥29॥ रावणं प्रेक्ष्य हृष्टात्मा जयार्थे समुपागमत् । सर्वयत्नेन महता वृतस्तस्य वधेऽभवत् ॥30॥
Hindi translation:
उनका उपदेश सुनकर महातेजस्वी (श्रीरामजी) का शोक दूर हो गया। उन्होंने प्रसन्न होकर शुद्धचित्त से आदित्यहृदय को धारण किया और तीन बार आचमन करके शुद्ध हो भगवान् सूर्य की ओर होकर इसका तीन बार जप किया।
इससे उन्हें बड़ा हर्ष हुआ। फिर परम पराक्रमी राघनाथजी ने धनुष्य उठाकर रावण की ओर देखा और उत्साहपूर्वक विजय पाने के लिए वे आगे बढ़े। उन्होंने पूरा प्रयत्न करके रावण के वध का निश्चय किया।
अथ रविरवदन्निरीक्ष्य रामं मुदितनाः परमं प्रहृष्यमाणः । निशिचरपतिसंक्षयं विदित्वा सुरगणमध्यगतो वचस्त्वरेति ॥31 ॥
Hindi translation:
उस समय देवताओं के मध्य में खड़े हुए भगवान् सूर्य ने प्रसन्न मन होकर श्रीरामचन्द्रजी की और देखा और निशाचरराज रावण के विनाश का समय निकट जानकर हर्षपूर्वक कहा – ‘अब जल्दी करो!’
Surya आदित्य हृदय स्तोत्र
सूर्य आदित्य हृदय स्तोत्र से तात्पर्य आदित्य हृदय स्तोत्र से ही है। क्योंकि सूर्य देव का नाम ही आदित्य है। भगवान सूर्य को आदित्य, सविता, भास्कर, मार्तंड, पूषन, तथा दिवाकर इत्यादि नामों से जाना जाता है।
आदित्य हृदय स्तोत्र के फायदे
आदित्य हृदय स्तोत्र के लाभ और फ़ायदों के बारे में स्तोत्र में ही वर्णन किया गया है। भगवान श्री राम को इस स्तोत्र का उपदेश करते हुए अगस्त्य ऋषि ने इस स्तोत्र के शुरू एवं अंत में इसके लाभों के बारे में बताया है।
ऋषि अगस्त्य ने कहा है कि जो भी मनुष्य आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ करेगा उसे युद्ध में समस्त शत्रुओं पर विजय प्राप्त होगी। यह नित्य अक्षय, सम्पूर्ण मंगलों में भी मंगल और परम कल्याणकारी है। आदित्य हृदय के पाठ से सम्पूर्ण पापों का नाश हो जाता है।
- आदित्य हृदय स्तोत्र के जप से सभी शत्रुओं का नाश, शत्रुओं पर विजय और पुण्य की प्राप्ति होती है। यह उत्तम स्तोत्र आयु वर्धक और चिंता एवं शोक को मिटाने वाला है– श्लोक 4-5।
- विपत्ति, कष्ट, अथवा दुर्गम मार्ग में या किसी भय के अवसर पर जो कोई भी मनुष्य इस आदित्य हृदय स्तोत्र का जाप करेगा उसे दुख नहीं होगा।
अगस्त्य ऋषि ने आदित्य हृदय स्तोत्र के प्रभाव और फलश्रुति के विषय में श्री राम से कहा था कि श्री राम तुम इसके जाप से शरीर में स्फूर्ति एवं उत्साह का अनुभव करोगे। भगवान सूर्य को समर्पित इस स्तुति के उच्चारण से मन एकाग्र और ऊर्जावान बनाता है। अपने लक्ष्य के प्रति मनुष्य निश्चिंत भाव से उद्यत हो जाता है। यह स्तोत्र श्रद्धावान के मन में विश्वास पैदा करता है, जैसा कि श्री राम ने अनुभव किया था।
आदित्य हृदय स्तोत्र का नियमित पाठ निश्चित रूप से मनुष्य को अच्छा स्वास्थ्य, दीर्घायु, दुखों को दूर करने और मन की शांति प्रदान करने की क्षमता रखता है।
How to read Aditya Hridaya Stotra
आदित्य हृदय स्तोत्र का जप या पाठ प्रातः सूर्योदय के समय किया जाता है। सुबह स्नान आदि नित्यक्रियाओं ने निवृत्त होकर पवित्र एवं श्रद्धा भाव से इस स्तोत्र का जप करने से भगवान आदित्य प्रसन्न होते हैं और स्तुति करने वाले पर कृपा करते हैं।
यदि माथे पर लाल चन्दन का तिलक या लेप लगाकर एवं लाल वस्त्र धारण कर के भगवान भुवन भास्कर सूर्य देव के उदित होने पर इस स्तोत्र का जप किया जाए तो शीघ्र ही सूर्य देव की कृपा प्राप्त होती है।
Who Wrote Aditya Hridaya Stotra
आदित्य हृदय स्तोत्र की रचना किसने की? वैसे तो अगस्त्य ऋषि ने सर्वप्रथम इस स्तोत्र को भगवान श्रीराम के सम्मुख प्रकट किया था। किन्तु स्वयं अगस्त्य मुनि ने राम से इस स्तोत्र के विषय में कहा था कि यह प्राचीन, गुप्त और वैदिक स्तोत्र है जो तुम्हें रणभूमि में निश्चित विजय दिलाएगा।
इसका अर्थ यह हुआ कि यह स्तोत्र अगस्त्य ऋषि से भी प्राचीन है और उनसे पूर्वकाल से ही भगवान सूर्यदेव को प्रसन्न करने के उद्देश्य से प्रयोग किया जाता था। अर्थात अगस्त्य ऋषि ने आदित्य हृदय स्तोत्र की रचना नहीं कि बल्कि वे उन महान वैदिक मंत्रदृष्टा ऋषियों की तरह थे जिन्होने इस स्तुति को मनुष्य कल्याण के लिए प्रकट किया।
इसलिए इस स्तोत्र के ऋषि अगस्त्य हैं किन्तु यह एक वैदिक स्तुति है जो प्राचीनकाल से ही चली आ रही है।
When to read Aditya Hridaya Stotra
मित्रों आदित्य हृदय स्तोत्र के बारे में जानने के बाद स्वाभाविक है कि आपके मन में प्रश्न उठे कि आदित्य हृदय स्तोत्र कब पढ़ना चाहिए? इस प्रश्न का उत्तर भी अगस्त्य ऋषि ने इसी स्तोत्र में दिया हुआ है। आदित्य हृदय स्तोत्र का जप मनुष्य को विपत्ति, कष्ट, अथवा दुर्गम मार्ग में या किसी भय के अवसर पर अवश्य करना चाहिए।
इस स्तोत्र के उच्चारण का सबसे उचित समय प्रातः सूर्योदय के समय को माना गया है। किन्तु साधकों को जब भी शत्रु पर विजय प्राप्त करनी हो अथवा अपने ध्येय की प्राप्ति के लिए प्रयत्न करना हो तो, इस स्तोत्र का जप अवश्य करना चाहिए।
भगवान सूर्यदेव एकमात्र ऐसे देव हैं जो सदा प्रत्यक्ष रहते हैं। इसलिए यदि संभव हो तो आदिय्य हृदय स्तोत्र का जप सूर्य भगवान के सम्मुख होकर करें।
Who Sang Aditya Hridayam?
आदित्य हृदय स्तोत्र या आदित्य हृदयम भगवान सूर्य की स्तुति है जिसे पहली बार महर्षि अगस्त्य द्वारा युद्ध के मैदान में राम को सुनाया गया था।
श्रीराम ने अगस्त्य ऋषि के उपदेशानुसार पहली बार आदित्य हृदय स्तोत्र का गायन किया था। वाल्मीकि रामायण में उल्लेख है कि रावण से युद्ध के पूर्व जब श्रीराम चिंतित से खड़े थे तो उत्साह और शक्ति का संचार करने के लिए एवं रावण पर युद्ध में विजय के लिए उन्होने सूर्य देव की स्तुति की थी।
भगवान राम ने पहली बार आदित्य हृदय स्तोत्र का गायन तीन बार किया था। इसके गायन से उनमें सूर्यदेव की कृपा से नव उत्साह और बल का संचार हुआ था और वे रावण से युद्ध के लिए खड़े हो गए थे। युद्ध के अंत में उन्होने रावण का वाढ किया और अपने शत्रु पर विजय पाई।
Is Aditya Hridayam part of Ramayana?
आदित्य हृदय वाल्मीकि रामायण के युद्ध कांड के 105वें सर्ग में उल्लेखित है। इसलिए यह स्तोत्र रामायण का भाग है। इस वैदिक महा स्तोत्र में 31 मंत्र रूपी श्लोक हैं।
रामायण के युद्ध कांड में उल्लेख है कि जब भगवान श्री राम लंकापति रावण से युद्ध करते हुए थक गए थे, तब महर्षि अगस्त्य ने श्री राम से इस स्तोत्र का पाठ करने के लिए कहा था। ऋषि अगस्त्य ने श्री राम को रावण पर विजय प्राप्त करने के उद्देश्य से सूर्य देव की स्तुति में ‘आदित्य हृदय’ का पाठ करने को कहा था। । यह स्तोत्र छंदों के संग्रह के रूप में है।
रामायण महाकाव्य में अगस्त्य मुनि ने राम से कहा था कि इस आदित्य हृदय स्तोत्र के पाठ से तुम युद्ध में सभी शत्रुओं पर विजय प्राप्त कर सकोगे। वाल्मीकि रामायण के युद्ध कांड में उल्लेखित होने के कारण सूर्य भगवान की यह स्तुति रामायण का अंग है। हालांकि इसकी उत्पत्ति के विषय में कोई नहीं जानता क्योंकि स्वयं अगस्त्य मुनि ने इसे गुप्त वैदिक स्तोत्र बताया था।